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उधोगों का वर्गीकरण

औद्योगिक युग की शुरुआत से ही उद्योगों को विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत किया जाना प्रारंभ हो गया था । परंतु धीरे-धीरे तकनीकी युग में मानव का ज्यों-ज्यों प्रवेश होता गया, त्यों – त्यों उधोगों को वर्गीकृत किए जाने वाले आधारों में भी परिवर्तन होता गया । वर्तमान में उद्योगों का वर्गीकरण एक जटिल प्रक्रिया है । क्योंकि वर्तमान के उद्योग कई तरह से अनेक प्रकार के कच्चे माल का उपयोग करते हैं और वहीं अनेक प्रकार की वस्तुओं का निर्माण करते हैं । अतः प्राचीन काल में उद्योगों का वर्गीकरण एकरूपता आधारित था वह बदलकर बहुरूपी आधार वाला हो गया है । उधोगों के कार्य भी बहुकार्य हो गए हैं । इस प्रकार आज के उद्योगों को किसी एक नाम से नहीं पहचाना जा सकता ।

वर्तमान की सभी जटिलताओं के पश्चात भी कुछ उद्योग अपनी प्रारंभिक छाप बनाए हुए हैं, परंतु तकनीक ने उन को प्रभावित करने से नहीं छोड़ा है । कुछ आवश्यक परिवर्तन (तकनीकी परिवर्तन) उनमें भी हुए हैं । जैसे सूती वस्त्र उद्योग एवं इस्पात उद्योग । 
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उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि उद्योगों के वर्गीकरण में जटिलताएं हैं, उन जटिलताओं को देखते हुए उद्योगों को वर्गीकृत करने के कई आधार निर्मित होते हैं । चलिए आज उद्योगों को विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत करते हैं –

1.     भार के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण

उद्योगों में निर्मित सामान के महत्व के साथ-साथ उनके भार के आधार पर भी वर्गीकृत किया जाता है । भार के आधार पर उद्योगों को दो भागों में विभक्त किया जाता है –
1.भारी उधोग तथा  2. हल्के उद्योग ।

भारी उधोग (Heavy Industries) -  ये अधिक पूंजी निवेश, अधिक कच्चे माल एवं बड़े पैमाने पर उत्पादन करने वाले उद्योग होते हैं । इन उद्योगों को आधारभूत उद्योग भी कहा जाता है । यह देश की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने की दिशा में ऐसे समान का निर्माण करते हैं जो देश के अन्य उद्योगों में उपयोग आता है । इस प्रकार इन से दूसरे उधोग चलते हैं । जैसे लोहा इस्पात उद्योग । क्योंकि इस्पात का निर्माण अनेक मशीनें, कल पुर्जे, सामान, औजार आदि बनाने के लिए जरूरी होता है । इसी प्रकार सूती वस्त्र, इंजीनियरिंग, सीमेंट उद्योग भारी उद्योगों की श्रेणी में आते हैं ।
हल्के उधोग (Light Industries) – ये उद्योग किसी एक विशेष क्षेत्र में उत्पादन प्रारंभ करते हैं । इन से निर्मित माल या वस्तुओं की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है अर्थात कम पैमाने पर उत्पादित होती है। ये सीमित मात्रा में कच्चे माल की खपत करते हैं । ये आधारभूत उद्योग नहीं होते अतः इनसे अन्य उद्योग नहीं चलते । वैसे देश की आर्थिक सुदृढ़ता में इनका भी पूर्ण योगदान होता है । परंतु ऐसा नहीं है कि इनके बंद होने से अन्य उद्योग प्रभावित होते हैं । हल्के उद्योगों में घरेलू सामान, उद्योगों के औजार, कृषि उपकरण आदि का उत्पादन होता है । बर्तन उद्योग, साइकिल उद्योग, कागज उद्योग, प्लास्टिक उद्योग आदि अन्य उद्योग भी इसी प्रकार के उद्योग हैं ।

2.    आकार के आधार पर वर्गीकरण 

किसी उधोग के आकार का निर्धारण उसमें निवेशित की गई पूंजी की मात्रा, कार्यरत लोगों की संख्या, उत्पादन की मात्रा आदि के आधार पर किया जाता है । इस प्रकार के उधोगों को मुुख्यत: तीन प्रकारों में विभक्त किया जाता है –
1.    कुटीर उद्योग 2. लघु उद्योग तथा 3. वृहत् उधोग ।
दस्तकारी, हथकरघा, बुनकर टोकरी बनाने से संबंधित उधोग कुटीर उद्योग की श्रेणी में आते हैं । इनमें कार्यरत श्रमिकों की संख्या कम होती है तथा यान्त्रिक ऊर्जा का उपयोग नहीं होता है । उत्पादित सामान स्थानीय बाजार में बेचा जाता है । लघु उद्योग यांत्रिक शक्ति का उपयोग करते हैं यह बड़े उद्योगों के लिए कल पुर्जे भी निर्मित करते हैं । इलेक्ट्रॉनिक सामान बनाने वाली इकाइयां, रेडियो, टीवी सेट, प्लास्टिक की वस्तुएं, कपड़े, खिलौने, फर्नीचर, खाद्य तेल, चमड़े का सामान आदि निर्मित करने वाले उद्योग लघु उद्योग की श्रेणी में आते हैं । इनमें श्रमिक एवं पूंजी निवेश अधिक होता है ।
वृहत् उद्योगों में उत्पाद की गुणवत्ता व विशिष्टकरण  पर विशेष ध्यान दिया जाता है । इन उद्योगों में बड़े संसाधन आधार की आवश्यकता होती है । अतः कच्चा माल दूर स्थित विभिन्न स्थानों से मंगाया जाता है । उत्पादन भी बड़े पैमाने पर होता है ।  बिक्री के लिए सुदूर बाजारों में भेजा जाता है । लोहा – इस्पात, पेट्रो रसायन, वस्त्र निर्माण तथा मोटर निर्माण उद्योग इसी श्रेणी के उद्योग होते हैं ।

3.    स्वामित्व के आधार पर वर्गीकरण

उधोगों को स्वामित्व के आधार पर निम्न प्रकार से विभाजित किया जाता है-
1.    सरकारी या सार्वजनिक उद्योग
2.    निजी क्षेत्र के उद्योग
3.     संयुक्त क्षेत्र के उद्योग ।

जब उद्योग का स्वामित्व तथा प्रबंधन सरकार के पास हो तो इसे सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग या सरकारी उद्योग कहा जाता है । राज्य व केंद्र सरकारें ऐसी इकाइयों की स्थापना व संचालन करती हैं । जब किसी एक व्यक्ति या अधिक व्यक्ति मिलकर किसी उधोग की स्थापना, प्रबंधन व संचालन करते हो, तो ऐसे उद्योग निजी क्षेत्र के उद्योग होते हैं । एक से अधिक व्यक्ति संगठन या संस्था अथवा निगम मिलकर किसी उद्योग की स्थापना, प्रबंधन एवं संचालन करते हैं उन्हें संयुक्त क्षेत्र के उद्योग कहते हैं । जैसे हिंदुस्तान लीवर, पेप्सी, कोका - कोला आदि विश्व के अनेक देशों में अपने उद्योग स्थापित किये है ।

4.    संसाधन आधारित उद्योग

उद्योगों को कच्चे माल की उपलब्धता जिस क्षेत्र से होती है उस क्षेत्र के आधार पर भी वर्गीकृत किया जाता है  जैसे - कृषि आधारित उद्योगों में कृषि से प्राप्त उत्पादों को कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त किया जाता है । सूती वस्त्र चीनी तेल एवं वनस्पति घी उद्योग इसके उदाहरण है । वनों से प्राप्त उत्पादों को कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है उन्हें वन आधारित उद्योग कहते हैं । जैसे फर्नीचर उद्योग कागज एवं लुग्दी उद्योग आदि । खनिज पदार्थों का कच्चे माल के रूप में प्रयोग करने वाले उद्योगों को खनिज उद्योग कहते हैं । लौह धातु आधारित उद्योगों जैसे लौह इस्पात उद्योग को लौह धातु उद्योग कहते हैं । तांबा, एलुमिनियम उधोग अलौह धातुओं पर आधारित होने के कारण अलौह धातु उद्योग कहलाते हैं । रासायनिक पदार्थों पर आधारित उद्योगों को रासायनिक उद्योग कहा जाता है जैसे पेट्रो रसायन, प्लास्टिक, कृत्रिम रेशे तथा औषधि निर्माण उद्योग आदि ।

5.    कच्चे माल पर आधारित उद्योग

ऐसे उधोगों की स्थापना में कच्चे माल का प्रभाव अथवा इनका उत्पादन में कच्चे माल के वजन के आधार पर देखा जाता है । इसी आधार पर उद्योग कच्चे माल की तरफ स्थापित किए जाते हैं । अतः इन्हें कच्चे माल पर आधारित उद्योग कहा जाता है । बड़े बड़े उद्योगों में वस्त्र निर्माण की प्रक्रिया के दौरान वजन घट जाता है । धातु को आकृति प्रदान करते समय इसके कटे भाग बेकार हो जाते हैं । नई वस्तुओं के निर्माण में रसायन दोबारा प्रयोग में आ जाते हैं । सूती वस्त्र उद्योगों में भी ऐसी कतरने निकल जाती हैं । इस प्रकार जो माल वजन घटाने वाला होता है वह उसके निर्मित उद्योग को अपनी और आकर्षित कर लेता है ।

6.    शक्ति के साधनों पर आधारित उद्योग

ऐसे उद्योग जिन्हें अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है या वे पूर्णतया ऊर्जा पर ही चलते हैं शक्ति के साधनों पर आधारित उद्योग कहलाते हैं । ऐसे उद्योगों को चलाने में अनेक तथ्यों का योगदान होता है । लेकिन इन सब में प्रमुख महत्व शक्ति के रूप में ऊर्जा का ही होता है ।। यदि ऊर्जा की आपूर्ति न हो तो यह बंद हो जाते हैं ।  एलुमिना एवं एलुमिनियम व वस्त्र उद्योग ऐसे ही उद्योग है ।

7.    बहुस्थिति उद्योग

कुछ ऐसे उद्योग जिनकी स्थिति एक से अधिक आधारों वाली होती है । जो किसी एक तथ्य या अधिक तथ्य जहां उपलब्ध हों वहीं स्थापित कर दिए जाते हैं । इनमें यह आवश्यक नहीं होता कि कच्चा माल, ऊर्जा, श्रमिक या बाजार उपलब्ध हो तभी इनकी स्थिति लाभप्रद होगी । जैसे तेल उत्पादक क्षेत्र से सैकड़ों किलोमीटर दूर पाइपलाइन द्वारा खनिज तेल शोधन शालाओं तक भेजा जाता है । इसका मुख्य कारण उस से निर्मित होने वाले सामानों का उपयोग शोधनशाला वाले क्षेत्र में होता है । अतः रिफाइनरी या पेट्रोकेमिकल्स उद्योग मांग वाले क्षेत्र में स्थापित कर दिए जाते हैं । 

8.    स्वच्छंद उद्योग

पिछले कई दशकों में उच्च प्रौद्योगिकी क्रियाकलापों का शीघ्रता से विस्तार हुआ है । अत्यंत परिष्कृत उत्पादों का उत्पादन करने वाले उद्योगों में वैज्ञानिक शोध एवं विकास की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । इन उद्योगों की मुख्य विशेषता यह है कि यह अपने उत्पादों को बाजार की मांग के अनुरूप बड़ी तेजी से सुधारते हैं तथा कुशल श्रमिकों की भर्ती करते हैं । इनका अंतिम उत्पाद छोटा होता है । अधिकांश दशाओं में सस्ता व आसानी से परिवहन योग्य होता है । यह प्रदूषण रहित उद्योग होते हैं । कंप्यूटर पार्ट्स, मोबाइल, सॉफ्टवेयर, दूरसंचार, सैनिक उपकरण, परीक्षण तथा मापन उपकरण, कार्यालय उपकरण, मोटर पार्ट्स, वाशिंग मशीन, बिजली के चूल्हे, रेडियो, रिकॉर्डर तथा केलकुलेटर आदि के उद्योग स्वच्छंद उद्योग के प्रमुख उदाहरण हैं 

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