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भारत में पर्यावरण प्रबंधन

भारत पर्यावरण सरंक्षण के संबंध में अन्य देशों से पिछड़ा हुआ नहीं है । क्योंकि भारत में वर्षों पुराने धर्म ग्रंथों में पर्यावरण सरंक्षण के संबंध में व्यापक जानकारी मिलती है । जिसमें विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों के अतिरिक्त जड़ी बूटियों, वृक्षों, जीव - जंतुओं के सरंक्षण एवं उपयोग के संदर्भ में ज्ञान का पता चलता है । सन् 1763 ई. का खेजड़ली (जोधपुर, राजस्थान) में अमृता देवी के नेतृत्व में अनेक महिलाओं द्वारा दिया गया विश्व का अनूठा बलिदान भारत को जागरूक एवं पर्यावरण हितैषी राष्ट्र के रूप में पहचान देता हैं । अतः भारत को पर्यावरण सरंक्षण एवं प्रबंधन के क्षेत्र में विश्व का अग्रणी राष्ट्र माना जाना चाहिए क्योंकि यहां के धर्म ग्रंथों में विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक संसाधनों, जड़ी बूटियों, वृक्षों, जानवरों, नदियों एवं अन्य प्राकृतिक स्थलों के बारे में विस्तारपूर्वक विवेचन हुआ है । ये धर्म ग्रंथ हमें प्रकृति के साथ जुड़े रहने का संदेश देते हैं। 


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भारत पर्यावरण जागरूकता का वास्तविक प्रारंभ स्टॉकहोम मैं हुए मानव पर्यावरण सम्मेलन के उपरांत हुआ । जून 1972 में स्टॉकहोम में मानव पर्यावरण सम्मेलन बुलाया गया था । जिसमें विश्व के 119 राष्ट्रों ने भाग लिया । इस सम्मेलन में पहली बार ‘एक ही पृथ्वी' ( Only One Earth) का सिद्धांत स्वीकार किया गया । इस सम्मेलन में पर्यावरण सरंक्षण एवं जागरूकता हेतु एक विस्तृत कार्यक्रम निर्धारित किया गया जो “स्टॉकहोम घोषणा – पत्र – 1972” के नाम से प्रसिद्ध है । यह पर्यावरण संरक्षण से संबंधित गतिविधियों का एक ऐतिहासिक दस्तावेज है, जिसे विश्व पर्यावरण का “ मैग्नाकार्टा “ कहां जाता है। इस सम्मेलन में भारत की ओर से तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने भाग लिया । उन्होंने इस सम्मेलन में अशोक के बारे में बताया कि वे प्रथम एवं एकमात्र ऐसे सम्राट थे । जिन्होंने पर्यावरण सरंक्षण को बढ़ावा दिया ।

भारत में पर्यावरण प्रबंधन हेतु संवैधानिक उपाय

वर्तमान में पर्यावरण सरंक्षण संबंधी लगभग 200 कानून है। देश में पर्यावरण संबंधी 18 सो 53 में बनाया गया पहला कानून “शोर एक्ट” था । सन् 1976 में संविधान के 42वें संशोधन के अंतर्गत पर्यावरण संबंधी मुद्दे शामिल किए गए। राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों में अनुच्छेद 48 'अ' जोड़ा गया और कहा गया कि “ राज्य देश के प्राकृतिक पर्यावरण एवं वनों में वन्यजीवों की सुरक्षा तथा विकास के उपाय करेगा ।“ जोड़े गए मौलिक कर्तव्यों के अध्याय के अंतर्गत अनुच्छेद 51'अ' (जी) मैं कहा गया कि “वनों, झीलों, नदियों और वन्य जीवन की सुरक्षा व्यवस्था विकास, सभी जीवों के प्रति सहानुभूति प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा ।'’ इसी संशोधन से वन एवं वन्य जीवन से जुड़े मामले राज्य सूची से समवर्ती सूची में कर दिये गये । अब  तक 24 से अधिक राज्यों में जल एवं वायु प्रदूषण, निवारण एवं नियंत्रण से संम्बधिंत कई कानून निर्मित हो चुके हैं । पर्यावरण सरंक्षण अधिनियम - 1986 इनमें शामिल है ।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड 

मानव अस्तित्व के स्वस्थ स्वरुप के लिए प्राकृतिक संपदा एवं मनुष्य के कार्यों के बीच नाजुक और जटिल संतुलन की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए सितंबर 1974 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड गठित किया गया । यह संस्था प्रदूषण नियंत्रण का संदेश देश भर में फैलाने का काम करती है । यह बोर्ड औद्योगिक संयंत्रों का निर्माण, प्रक्रियाओं के कामकाज का मूल्यांकन करने तथा वायु एवं जल प्रदूषण की रोकथाम व नियंत्रण के उपाय सुझाने के लिए उनका निरीक्षण करता है । लगभग सभी बड़ी मंझोली नदियों के जल की गुणवत्ता की निगरानी के लिए देशभर में 45 निगरानी केंद्र और वायु की गुणवत्ता पर नजर रखने के लिए 220 केंद्र स्थापित किए गए हैं ।

राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना

देश में नदियों के जल को प्रदूषित पदार्थों से मुक्त रखने के लिए 1995 में राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना शुरू की गई । इसके माध्यम से गंगा, यमुना, दामोदर, गोमती सहित 18 नदियों के जल को प्रदूषण मुक्त करने की योजना तैयार की गई । गंगा नदी में अपशिष्ट संबंधी प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए गंगा कार्य योजना शुरू की गई । देश की महत्वपूर्ण जिलों को साफ करने के लिए राष्ट्रीय झील संरक्षण योजना तैयार की गई । हिमालय क्षेत्र में वनों के अधिक दोहन के परिणाम स्वरूप भू - क्षरण में वृद्धि हुई है, जलाशयों की क्षमता कम हुई है और मौसमी घटनाओं में अनियमितताएं आई है । इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए हिमालय कार्य योजना बनाई गई ।

पर्यावरण वाहिनी

पर्यावरण प्रबंध के लिए किए जा रहे भारतीय प्रयासों के अंतर्गत यह कार्यक्रम केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा सन 1992 93 में प्रारंभ किया गया इसके प्रमुख उद्देश्य निम्न प्रकार है –
•    सक्रिय भागीदारी से जनता में पर्यावरण के प्रति जागरूकता तथा उनकी संबद्धता उत्पन्न करना ।
•    वन वन्य जीव प्रदूषण तथा पर्यावरणीय ह्रास के संदर्भ में किए जा रहे गैरकानूनी कार्यो की सूचना देना ।
•    वनीकरण तथा पौधों एवं वृक्षारोपण के संदर्भ में पूरी जानकारी उपलब्ध कराना ।
•    शुद्ध वायु एवं जल की गुणवत्ता तथा विभिन्न पर दूसरों का विश्लेषण और अनुमापन करना । 
उपरोक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संपूर्ण देश भर के लगभग 184 जिलों में 1130 पर्यावरण वाहिनी यों का गठन किया गया ।

इको क्लब 

जीवन के रचनात्मक दौर में स्कूली बच्चों में पर्यावरण रक्षा के लिए अनुकूल आदतें डालने के लिए पर्यावरण मंत्रालय ने ‘इको क्लब' की योजना आरंभ की । स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को पर्यावरण के संबंध में जागरूक बनाने के लिए 2000 स्कूलों में इको क्लब गठित किए गए हैं । इन क्लबों में उन्हें पेयजल और हवा के नमूनों की जांच करने के लिए पाठ्य सामग्री और किट उपलब्ध कराए गए हैं । इको क्लब के सदस्यों को पर्यावरण प्रबंध के विभिन्न पहलुओं का ज्ञान दृश्य - श्रव्य उपकरणों, प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम, व्याख्यानों आदि की सहायता से कराया जाता है ।

वृक्षारोपण एवं वन्य जीव संरक्षण 

ग्रामीण और जनजातीय समुदायों को लाभ पहुंचाने के लिए तथा उनके लिए जलाऊ लकड़ी चारा और वृक्षों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए पारिस्थितिकी विकास योजना शुरू की गई ।  रियो पृथ्वी सम्मेलन में तय किए गए वानिकी सिद्धांत और राष्ट्रीय वन नीति को क्रियान्वित करने के लिए पर्यावरण कार्य योजना तथा राष्ट्रीय वानिकी कार्य योजना तैयार की गई । इसका उद्देश्य कुल भूमि के लगभग 33% भाग को वनाच्छादित करना है । वनस्पति और जीव जंतुओं को बचाने के उद्देश्य से वन मंत्रालय ने अवैध शिकार और तस्करी के लिए दिए जाने वाले दण्डों को और अधिक कठोर बनाने के लिए वन्य जीव अधिनियम में संशोधन किया है । देशभर में 89 राष्ट्रीय उद्यानों और 490 वन्य जीव अभ्यारण की स्थापना की गई है । पारिस्थितिकी तंत्र के सरंक्षण और जैव विविधता के परिरक्षण के लिए 13 मंडल आरक्षित क्षेत्र  स्थापित किए गए हैं । हाथियों को प्राकृतिक निवास के उत्पन्न खतरों को दूर करने के लिए हाथी परियोजना शुरू की गई है ।

पर्यावरण से संबंधित फिल्में 

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय पर्यावरण सरंक्षण एवं पर्यावरण के प्रति जनचेतना का संदेश पहुंचाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक संचार माध्यमों की भूमिका को महत्व देते हुए पर्यावरण, वन एवं वन्यजीवों पर फिल्म बनाने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है । अब तक 75 से अधिक फिल्में बनाई जा चुकी है जो राष्ट्रीय प्रसारण नेटवर्क व अन्य चैनलों पर दिखाई जा रही हैं ।

राष्ट्रीय स्तर के प्रमुख पुरस्कार 

भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत स्वतंत्र रूप से कार्य कर रहे पर्यावरण विभाग ने पर्यावरण क्षेत्र में कार्य कर रहे व्यक्ति अथवा संस्थाओं को कई पुरस्कारों का प्रावधान किया है । इन पुरस्कारों को देने का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण के प्रति व्यक्ति समूह तथा संस्थानों में रुचि जागृत कर पूरे देश में पर्यावरण प्रबंध के प्रति स्पर्धा का वातावरण तैयार करना है । इन पुरस्कारों में इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र पुरस्कार, प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण हेतु राष्ट्रीय पुरस्कार, महावृक्ष पुरस्कार आदि महत्वपूर्ण हैं ।

पर्यावरण उत्कृष्टता केंद्र 

पर्यावरण मंत्रालय ने पर्यावरणीय विज्ञान और प्रबंधन के प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में जागरूकता, अनुसंधान और प्रशिक्षण को मजबूत करने की दृष्टि से पांच उत्कृष्टता केंद्रों की स्थापना की है । ये केंद्र हैं – 1. पर्यावरण शिक्षा केंद्र, अहमदाबाद 2. पर्यावरण शिक्षा केंद्र, चेन्नई 3. पारिस्थितीकीय विज्ञान केंद्र, बंगलोर 4. खनन पर्यावरण केंद्र, धनबाद और 5. सलीम अली पक्षी विज्ञान तथा प्राकृतिक विज्ञान केंद्र, कोयंबटूर ।

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