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ओजोन क्षय : गंभीर संकट

पृथ्वी पर जीवन को संभव बनाने में बहुत से कारकों का योगदान है । इसमें सबसे महत्वपूर्ण पृथ्वी का वायुमंडल भी है । जिसमें कई गैसों का मिश्रण है, इन गैसों में नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, ऑर्गन, हाइड्रोजन, हिलियम, ओजोन, क्रिप्टोन, जिनोन, जलवाष्प, धुऐं एवं धूल के कण उपस्थित हैं । इन सभी का वायुमंडल के संगठन में महत्वपूर्ण योगदान है । चलिए आज चर्चा करते हैं कि ओजोन का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव है ? हमें ओजोन के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करना क्यों आवश्यक है ? 

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 ओजोन क्या है ?

ओजोन एक तीव्र गंध वाली गैस है । जो वायुमंडल में बहुत कम मात्रा में मिलती है । ओजोन की उपस्थिति वायुमंडल की दूसरी परत समताप मंडल में पृथ्वी की सतह से 15 – 35 किमी. की ऊंचाई पर एक परत के रुप में है । इसका निर्माण ऑक्सीजन (O²) के अणुओं के टूटकर मिलने से होता है । क्योंकि इतनी ऊंचाई पर सूर्य से आने वाली पैराबेंगनी किरणों की मात्रा अधिक होती है । अतः तापमान अधिक होने से ऑक्सीजन के अणु टूटकर O + O हो जाते हैं, तथा वे ऑक्सीजन से मिलने पर O² + O = O³ ( ओजोन ) बन जाते हैं । 

ओजोन का मानव जीवन पर प्रभाव –

ओजोन गैस की परत सूर्य से आने वाली पैराबेंगनी किरणों को सीधे धरातल पर आने से रोकती है । जिससे न केवल पृथ्वी का तापमान संतुलित बना रहता है बल्कि छोटे बड़े जीव जंतुओं का जीवन भी सुगम बना हुआ है । पैराबेंगनी किरणें सूर्य से निकली विद्युत चुम्बकीय किरणें होती हैं । ये किरणें अत्यंत हानिकारक होती हैं । पृथ्वी पर पहुंचने से पहले ही ओजोन इन हानिकारक पैराबेंगनी किरणों को अवशोषित कर लेती है ।

ओजोन परत का क्षय –

सर्वप्रथम 1985 ई. में जीसेफ फरमन के नेतृत्व में अण्टार्कटिका गये एक ब्रिटिश वैज्ञानिकों के दल ने ओजोन परत विरल होने की पुष्टि की । व्यापक व विस्तृत अध्ययन से पता चला कि समताप मंडल में उपस्थित ओजोन परत तीव्र गति से विरल होती जा रही है । समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो निकट भविष्य में न केवल मानवीय जीवन अपितु समस्त प्राणियों का जीवन खतरे में पड़ सकता ।

ओजोन क्षय के कारण –

ओजोन क्षय  का प्रमुख कारण क्लोरोफ्लोरो कार्बन,(CFC)  है । इस गैस का प्रमुख स्रोत रेफ्रीजरेशन, वातानुकूलन, रेजिन, फोम, नर्म प्लास्टिक, इलेक्ट्रॉनिक उद्योगों में रसायन हैं । इसी प्रकार अग्नीशमन के लिए जहाजों, वायुयानों एवं कम्प्यूटर कन्ट्रोल के रूप में काम आने वाली हैंलोन्स गैसें है । हाइड्रोब्रोमोफ्लोरो मिथाइल क्लोरोफार्म गैसें रेफ्रिजरेशन फोम ब्लोइंग में CFC की जगह विलायक के रुप में कई उद्योगों में काम आती है । ये रसायन विशेषकर CFC – 11 व CFC – 12 (जिसे फ्रियोन कहा जाता है) में हाइड्रोजन बिल्कुल नहीं होता हैं । ये फ्रियोन वायुमंडल में अधिक ऊंचाई पर पहुंच कर ओजोन अणुओं को समाप्त करता है । एक CFC का अणु ओजोन के कई हजार अणुओं को खत्म करने की क्षमता रखता है । जेट विमान और अग्निशमन अंतरिक्ष रॉकेट के द्वारा भी ओजोन परत का विनाश होता है । जेट विमानों द्वारा बाहर निकले विस्फोटक से उच्च तापमान पर वायुमंडल में ऑक्सीजन और नाइट्रोजन नाइट्रिक ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाते हैं । ये ऑक्साइड ओजोन परत को नष्ट करते हैं ।

ओजोन विरलता के दुष्प्रभाव –

ओजोन विरलता से पृथ्वी के समस्त प्राणी जगत को अत्यधिक हानि हो सकती है । कुछ दुष्प्रभाव निम्न प्रकार से हैं -
•    ओजोन परत की 5% विरलता पृथ्वी पर लगभग 10% अधिक पराबैंगनी किरणों को पहुंचाती है ।
•    पराबैंगनी किरणों से त्वचा कैंसर होने की संभावना रहती है । यह मनुष्य एवं पशुओं के डीएनए में बदलाव लाती है ।
•    इन किरणों के प्रभाव से मोतियाबिंद की बीमारी उत्पन्न होती है । समय रहते उपचार न किया जाए तो मनुष्य अंधा भी हो सकता है ।
•    पराबैंगनी किरणों से मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है । अतः वह कई संक्रामक रोगों का शिकार हो सकता है ।
•    पराबैंगनी किरणों से पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया प्रभावित होती है ।
•    एक विशेष पराबैंगनी किरण UV-B समुद्र में कई किलोमीटर अंदर प्रवेश कर सकती है जिससे समुद्री जीवन को क्षति पहुंच सकती है ।
•    यदि कोई गर्भवती महिला इन किरणों के संपर्क में आती है तो कृपया स्थित शिशु को अपूरणीय क्षति हो सकती है ।
•    ओजोन क्षय से पृथ्वी का तापमान बढ़ेगा एवं दीपों के डूबने की आशंका रहेगी विनाशकारी तूफानों के खतरे भी गंभीर होंगे ।
•    पृथ्वी के समस्त पारिस्थितिकी तंत्र पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा ।
•    जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़, सूखा एवं चक्रवात आदि में वृद्धि होगी ।


ओजोन विरलता को रोकने के उपाय –

ओजोन की विरलता को रोकने के लिए क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) उत्सर्जन पर प्रभावी नियंत्रण करना होगा । सर्वप्रथम संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वाधान में सन 1978 में मॉन्ट्रियल संधि द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ओजोन विनाश को बचाने का प्रयास हुआ । इस संधि पर 26 राष्ट्रों ने हस्ताक्षर किए व यह निश्चय किया कि क्लोरोफ्लोरोकार्बन के उत्पादन एवं उपभोग को बंद किया जाए । सन् 1990 में लंदन सम्मेलन में विकासशील देशों को धन के साथ CFC रहित तकनीकी ज्ञान में सहयोग देने का निश्चय किया गया । 1992 के कोपेनहेगन सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया कि जहां तक हो सके सभी देश CFC का उपयोग toसमाप्त करेंगे ।

                 उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि ओजोन की विरलता एक विकट समस्या है तथा इस पर प्रभावी नियंत्रण के लिए मानव को ही उचित कदम उठाने होंगे ।  यदि समय रहते ऐसा नहीं किया गया तो न केवल मानवीय जगत को क्षति होगी बल्कि संपूर्ण जैव संपदा पर इसका असर पड़ेगा । दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र पर ओजोन की विरलता से अंटार्कटिक क्षेत्र की 2000 मीटर मोटी परत पिघल जाएगी तथा समुद्री जलस्तर में वृद्धि हो जाएगी । तटिय जनजीवन समुद्र में समाहित हो जाएगा तथा जल प्लावन की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी । 

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