भारत का प्रायद्वीपीय पठार प्राचीन कठोर चट्टानों एवं लावा निक्षेपों से निर्मित है । यह प्राचीनतम गौंडवानालैण्ड का भाग है । माना जाता है कि क्रिटेशियस काल से इयोसिन काल तक इस भाग पर ज्वालामुखी उद्गार हुए हैं, जिससे उबड़-खाबड़ धरातल तथा भ्रंश घाटियों का निर्माण हुआ है । लगभग 5 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में विस्तृत इस बेसाल्ट निर्मित पठार में लावा की अधिकतम गहराई 2000 मीटर तक है । लंबे समय के अपरदन के द्वारा अपवाह प्रणाली का विकास हुआ । जिससे अनेक बड़ी नदियों व उनकी सहायक नदियों से यह भू-भाग कट-फट गया है । नदियों के मुहानों वाले क्षेत्रों में कई छोटे-छोटे डेल्टाई व मैदानी भाग बन गए हैं जिससे इस प्रायद्वीप का आकार अत्यंत विखण्डित एवं जीर्ण-शीर्ण दिखाई पड़ता है ।
स्थिति - प्रायद्वीपीय पठार भारत का प्राचीनतम भूखण्ड है । यह समुद्र तल से औसतन 600 से 900 मीटर ऊंचा है । यह पठारी भाग तीन ओर से पर्वतों से घिरा हुआ है । इसके उत्तर में अरावली, विंध्याचल और सतपुड़ा की पहाड़ियां, पश्चिम में पश्चिमी घाट तथा पूर्व में पूर्वी घाट स्थित हैं । यह पठारी प्रदेश उत्तर से दक्षिण लगभग 1600 किलोमीटर व पूर्व से पश्चिम लगभग 1400 किलोमीटर है । इस पठारी भाग का ढाल उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व या पश्चिम से पूर्व की ओर है । नर्मदा तथा ताप्ती नदियों की घाटियां इस पठारी प्रदेश को दो असमान भागों में विभक्त कर देती हैं – उत्तरी भाग में ‘मध्यवर्ती उच्च भूमियों का क्षेत्र' तथा दक्षिण भाग को ‘दक्षिण का मुख्य पठार या दक्कन ट्रैप' कहा जाता है ।
मध्यवर्ती उच्च भूमियां
1. अरावली पर्वत श्रृंखला – अरावली दक्षिण – पश्चिम से उत्तर – पूर्व की ओर गुजरात के पालनपुर से राजस्थान होते हुए दिल्ली तक लगभग 800 किलोमीटर लंबाई में विस्तृत हैं यह भारत की प्रमुख जल विभाजक रेखा है । यह पुरा कैम्ब्रियन युग में एक विशाल मोड़दार पर्वत श्रृंखला थी । यह क्वार्टजाइट, नीस एवं शिष्ट शैलों से निर्मित है ।
पूर्वी राजस्थान की उच्च भूमि – उदयपुर से ग्वालियर तक पथरीले पठार के रूप में उबड़-खाबड़ और विषम भू-भाग है । यहां की प्रमुख नदियां चंबल, बनास एवं कालीसिंध हैं ।
3. विंन्ध्यन कगार – कठोर बलुआ चट्टानों से निर्मित यह क्षेत्र बुन्देलखण्ड तथा विंध्याचल श्रेणी के मध्य कगारी भूमि के रूप में एक कटा-फटा क्षेत्र है ।
बुंदेलखंड – बघेलखण्ड का पठार – यह भाग ग्वालियर पठार, विंध्यन कगार तथा यमुना नदी के मध्य अवस्थित है । इस क्षेत्र में कई सोपानी वेदिकाएं तथा ग्रेनाइट, नीस व बालू के टीले दिखाई पड़ते हैं । बेतवा तथा केन यहां की प्रमुख नदियां हैं ।
मालवा का पठार – यह क्षेत्र अरावली, विंध्यन एवं नर्मदा घाटी के मध्य लावा युक्त काली मिट्टी का उपजाऊ भू-भाग है । इसका उत्तरी भाग चंबल व उसकी सहायक नदियों नदियों ने खड्ड युक्त बीहड़ में परिवर्तित कर दिया है । चंबल, कालीसिंध एवं बेतवा यहां की प्रमुख नदियां हैं ।
6 विंध्याचल श्रेणी – यह पर्वत श्रेणी नर्मदा घाटी के उत्तर में गुजरात से सासाराम (बिहार) के बीच लगभग 1050 किलोमीटर की लंबाई में विस्तृत है । इस श्रेणी में अवसादी चट्टानों की अधिकता है । लाल बलुआ पत्थर (इमारती पत्थर) भी इस श्रेणी में पाया जाता है । इस श्रेणी की औसत ऊंचाई 1200 मीटर है । यह श्रेणी भी एक जलविभाजक है । यही भाग नर्मदा और सोन जैसी भ्रंश घाटियों का क्षेत्र है ।
सतपुड़ा पहाड़ी क्षेत्र – यह पर्वत श्रेणी पूर्व से पश्चिम की ओर विस्तृत है । सतपुड़ा पर्वत श्रेणी नर्मदा और ताप्ती की भ्रंश घाटियों के बीच उठा हुआ एक ब्लॉक पर्वत है । इसकी औसत ऊंचाई लगभग 770 मीटर है । इसका निर्माण मुख्यत: नीस और बैसाल्ट शैलों से हुआ है । मध्यप्रदेश का पंचमढ़ी यहां का प्रमुख पर्यटन स्थल है ।
दक्कन का पठार
यह पठार पूरी तरह से ज्वालामुखी क्रिया से निर्मित हुआ है । यह प्राचीन रवेंदार शैलों से निर्मित है । जीवाश्म रहित ग्रेनाइट, नीस, बेसाल्ट, चूना पत्थर तथा क्वार्ट्ज चट्टानों से इसका निर्माण हुआ है । पठार को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जाता है –
1. महाराष्ट्र का पठार – सह्याद्रि तथा कोंकण तट को छोड़कर इस पठार का संपूर्ण महाराष्ट्र में विस्तृत है । इसे कई भागों में वर्गीकृत किया जाता है – अंजता की पहाड़ियां, गोदावरी घाटी, अहमदनगर– बालाघाट पठार, भीमा बेसिन आदि इसके प्रमुख भाग हैं । सभी जगह दक्कन ट्रैप की शैलें पाईं जाती हैं ।
2. तेलंगाना का पठार – यह पठार आर्कियन नीस शैलों से निर्मित है । गोदावरी नदी इसे दो भागों में बांट देती है उत्तरी भाग पर्वतीय व वनाच्छादित है जबकि दक्षिणी भाग में मैदान जैसे क्षेत्रों की अधिकता है । यहां तालाबों से कृषि की जाती है । वर्धा नदी इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण नदी है ।
कर्नाटक का पठार - इस पठारी क्षेत्र में पर्वतीय क्षेत्र की अधिकता है । 600 मीटर की समोच्च रेखा द्वारा यह पठार दो भागों में बंट जाता है – उत्तरी भाग तथा दक्षिणी भाग । दक्षिणी भाग को ‘मैसूर का पठार' भी कहते हैं । उत्तरी भाग में कृष्णा तथा तुंगभद्रा प्रवाहित होती है तथा मैसूर के पठार में कावेरी प्रमुख नदी है। बाबाबूदन पहाड़ियों के सर्वोच्च शिखर मुलानगिरी (1223 मीटर) तथा कुद्रेमुख (1897 मीटर) इसी पठारी क्षेत्र में स्थित हैं ।
तमिलनाडु का पठार – दक्षिणी सह्याद्रि तथा तमिलनाडु के तटीय मैदान के मध्य इस पठारी क्षेत्र का विस्तार है । इसे भी दो भागों में बांटा जाता है – तमिलनाडु के पहाड़ियां तथा कोयम्बतूर- मदुरै उच्च भूमि । कोयम्बतूर-मदुरै उच्च भूमि में बेगाई तथा ताम्रपर्णी नदियों के बेसिन महत्वपूर्ण हैं ।
5. छोटा नागपुर का पठार – यह पठार झारखंड तथा कुछ भाग पश्चिमी बंगाल में स्थित है । इसकी उत्तरी सीमा पर राजमहल की पहाड़ियां तथा दक्षिणी सीमा महानदी द्वारा निर्धारित है । यहां की चट्टानें ग्रेनाइट तथा नीस से निर्मित हैं । महानदी, सोन, स्वर्णरेखा तथा दामोदर इस पठारी भाग की प्रमुख नदियां हैं । दामोदर नदी के उत्तर का पठारी भाग ‘हजारीबाग का पठार' तथा ‘कोडरमा का पठार’ कहलाते हैं जबकि दक्षिणी भाग ‘रांची का पठार' कहलाता है । छोटा नागपुर का पठार खनिज सम्पदा से समृद्ध है ।
6. ओडिशा की उच्च भूमि – ओडिशा उच्च भूमि की शैलें मुख्यत: आर्कियन ग्रेनाइट, नीस तथा लावा निर्मित है । उतरी भाग में मलयगिरि (1169 मीटर) तथा मेघसाती (1157 मीटर) एवं दक्षिणी भाग में महेन्द्रगिरि (1501 मीटर) उच्च शिखर हैं ।
7. मेघालय का पठार – मेघालय का पठार दक्षिण के पठार का ही एक बहिर्शायी भाग है । यह पठारी भाग लगभग 35291 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में विस्तृत है । गारो, खासी तथा जयन्तिया यहां की प्रमुख पहाड़ियां हैं ।
8. महानदी बेसिन – यहां आर्कियन, ग्रेनाइट तथा नीस शैलों के ऊपर कुडप्पा शैलें पाई जाती हैं । इस बेसिन को ‘छतीसगढ का मैदान' कहा जाता है । इस बेसिन की उत्तरी सीमा लोरमी पठार, छुरी पहाड़ियां तथा रायगढ़ की पहाड़ियों से निर्धारित है; पश्चिमी सीमा मैकाल पहाड़ी से तथा दक्षिणी सीमा राजहरा पहाड़ियों से निर्धारित है ।
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