पिछले दिनों पर्यावरण से संबंधित खबरें इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया तथा  सोशल मीडिया आदि के द्वारा विश्व जनमानस में छाई रही। एक स्वीडिश छात्रा ग्रेटा थुनबर्ग जो कि जलवायु परिवर्तन एवं प्रदूषण रोकने की दिशा में संघर्षरत है; के संदर्भ में भी जानने को मिला। ग्रेटा थुनबर्ग की आयु लगभग 16 वर्ष है लेकिन हिम्मत इतनी कि उसकी प्रेरणा से विश्व के 139 देशों में 20 सितंबर 2019 को विश्व शांति दिवस के अवसर पर 4638 कार्यक्रम पर्यावरण के संबंध में हुए।

                               इस प्रकार संपूर्ण विश्व जलवायु परिवर्तन व प्रदूषण को लेकर चिंतित है परंतु समाधान के लिए प्रयास नाकाफी प्रतीत होते दिखाई दे रहे हैं। ऐसा क्यों? यह जानने के लिए हमें 18 वीं शताब्दी से आज तक की सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक स्थितियां जाननी होंगी।
                              सन 1750 ईस्वी की इर्द गिर्द इंग्लैंड में कपड़ा मिलें प्रारंभ हुई। तभी से मानव का वास्तविक विकास प्रारंभ होता है । इसे ही 'औधोगिक क्रांति' की शुरुआत कहा जाताा है। मनुष्य द्वारा किए जानेे वाले कार्य मशीनों द्वारा संभालने से विकास को गति मिली। उद्योग राष्ट्र के विकास एवं समृद्धि केेेे प्रतीक बन गए । औद्योगीकरण के कारण नगरीकरण की प्रक्रिया आरंभ हुई । जिसके उपरांत आर्थिक - सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक आदि सभी दृष्टिकोण से पृथ्वी का स्वरूप बदल गया ।

मनुष्य ने क्या किया

1. औद्योगिक प्रक्रिया में विभिन्न संसाधनों को कच्चे माल के रूप में उपयोग में लिया। जीवाश्म ईंधनों जैसे कोयला व पेट्रोलियम का दोहन किया गया। परिणाम स्वरूप विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों का जन्म हुआ 
climate change


2. कृषि विकास के लिए वनों को काटा गया व कृषि भूमि में वृद्धि की । सिंचाई हेतु प्राकृतिक जल संसाधनों का दोहन किया गया जिससे जल संकट बढ़ा ।
3.औधोगिकरण से नगरीकरण की प्रक्रिया भी तीव्र हुई, जिससे अनेक प्राकृतिक एवं सामाजिक समस्याएं उत्पन्न हुई ।
4. मनुष्य ने औद्योगिकरण से हुए विकास से संतोष नहीं किया एवं आगे चलकर'तीव्र औधोगिक विकास' किया, जिसके फलस्वरूप सीमित मात्रा में संचित संसाधनों का हृास हुआ ।
5. मनुष्य की मुलभूत आवश्यकता पूर्ण होने के साथ - साथ भौतिक सुख-सुविधाओं का दायरा बढ़ा, जिससे जनसंख्या में तीव्र वृद्धि प्रारंभ हुई । जो विकासशील राष्ट्रों में एक समस्या बनी ।
                                        उपरोक्त सभी कार्य प्रारंभ में प्रकृति की सहन सीमा के अंदर थे । परंतु बाद में इनके दोहन की दर जीवमंडलीय वहन क्षमता से बाहर हो गई तो अनेक विश्वव्यापी समस्याएं उत्पन्न हो गई । वर्तमान में इनकी पहचान पर्यावरण के वास्तविक प्राकृतिक स्वरूप को नष्ट करने वाले घटकों के रूप में की जाती है । कुछ पर्यावरणीय समस्याएं इतनी अधिक प्रबल हो गई है कि इनका प्रभाव विश्वव्यापी हो गया है जिनमें कुछ इस प्रकार है-
                              - हरित गृह प्रभाव
                              - विश्व तापमान में वृद्धि
                              - जलवायु  में  परिवर्तन
                              - ओजोन क्षयिकरण तथा
                              - अम्लिय वर्षा ।
                                               निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि वर्तमान परिस्थितियों में हमें विकास भी करना है तो उपरोक्त चुनौतियों से संघर्ष भी करना होगा । औद्योगिक क्रांति से पूर्व की पर्यावरणीय दशाओं को आज एकाएक नहीं उत्पन्न किया जा सकता, परंतु निश्चित सीमाओं में रहकर विश्व बंधुत्व की भावना से पर्यावरण प्रदुषण को कम किया जा सकता है ।