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पर्यावरण : कैसा होना चाहिए

पर्यावरण शब्द संस्कृत भाषा के ‘परि’ उपसर्ग (चारों ओर) तथा ‘आवरण’ शब्द से मिलकर बना   है । जिसका अर्थ है ‘ऐसी वस्तुओं का समूह है जो हमें चारों ओर से घेरे हुए हैं।' 


environment



वर्तमान समय में पर्यावरण एक ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है, लेकिन जागरूकता का अभाव अभी भी परिलक्षित हो रहा है। यदि ग्रामीण समाज को छोड़ दिया जाए तो नगरीय क्षेत्रों में भी पर्यावरण के प्रति अधिक उत्सुकता नजर नहीं आती है । क्योंकि आम जनजीवन पर्यावरण सुरक्षा का दायित्व सरकार से पूरा करवाना चाहता है, जबकि सरकारें कानून बना सकती हैं । पर्यावरण सुरक्षा  ‘कानून’ के दायरे में रहकर आम जनता को ही करनी होती है । अतः यहां स्पष्ट हो जाता है कि पर्यावरण सुरक्षा के प्रति आम जनता में एक स्वाभाविक लगन उत्पन्न नहीं होगी तब तक पर्यावरण सुरक्षा एक दूर का सपना ही बना रहेगा । 

कैसा हो पर्यावरण

केविन आर. कोक्स ने अपनी पुस्तक The Geography of Environment Quality मैं पर्यावरण की गुणवत्ता के निम्न 8 बिंदु वर्णित किए हैं- 

1. किसी भी प्रकार का प्रदूषण न हो, 
2. उत्तम आवास की व्यवस्था हो, 
3. स्वास्थ्यवर्धक हो, 
4. आधुनिक सुविधाएं विद्यमान हो, 
5. मनोरंजन की पर्याप्त सुविधा हो, 
6. पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हो, 
7. शिक्षा की सुविधा हो, 
8. पर्याप्त नियोजन की संभावना हो ।

स्वस्थ पर्यावरण

पर्यावरण के जैविक एवं अजैविक कारक अपने प्राकृतिक संतुलन के अंतर्गत पाए जाते हों, तथा जिसमें मानव के स्वास्थ्यवर्धक जीवन व्यतीत करने के लिए अनुकूल दशाएं विद्यमान हो, उसे स्वस्थ पर्यावरण कहा जाता है । 
स्वस्थ पर्यावरण में किसी प्रकार का प्रदूषण नहीं पाया जाता है। पर्यावरण के जैविक एवं अजैविक घटकों की संतुलित अवस्था में बाहरी अवांछित तत्वों के प्रविष्ट होने से पर्यावरणीय गुणवत्ता में प्रदूषण के रूप में हृास प्रारंभ हो जाता है, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव जीवों की स्वस्थ दशाओं पर पड़ता है । यह प्रदूषण अनेक रूपों में प्रकट होता है। जिसके स्रोत भी अनेक होते हैं । सामान्यतः जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, भूमि प्रदूषण तथा रेडियोधर्मी तत्वों से उत्पन्न प्रदूषण प्रमुख रूप से पर्यावरण की गुणवत्ता का हृास कर रहे हैं । 

पर्यावरण प्रदूषण एवं प्रदूषक 

प्रदूषण पर्यावरण के जैविक तथा अजैविक तत्वों के रासायनिक, भौतिक तथा जैविक गुणों में होने वाला वह अवांछनीय परिवर्तन है, जो कि मानवीय क्रियाकलापों के परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है । दूसरे शब्दों में ‘एक स्वस्थ एवं संतुलित पर्यावरण में बाहरी अवांछित तत्वों के द्वारा उत्पन्न असंतुलन की दशा को पर्यावरण प्रदूषण कहते हैं ।‘ 
मनुष्य की क्रियाओं से अपशिष्ट पदार्थ तथा उनके निस्तारण से पर्यावरण का हृास करने वाले प्रतिकूल प्रभाव उत्पन्न होते हैं, जिनसे न केवल मानव बल्कि अनेक जीव - जन्तु प्रभावित होते हैं । मानवीय क्रियाकलापों के दौरान उपयोग में लिए गए ( Used ) तथा उपयोग के दौरान छोड़े गए अपशिष्ट ‘प्रदूषक’ कहलाते हैं । 

प्रदूषकों के स्त्रोत 

                      प्रदूषण करने वाले  प्रदूषकों  के स्रोत उत्पत्ति के आधार पर दो प्रकार के होते हैं - 
1.    प्राकृतिक स्रोत - ज्वालामुखी उद्गार से निकलने वाली विभिन्न गैसें, धूल, राख  तथा भूकंपीय घटनाओं से उत्पन्न धरातलीय परिवर्तन, बाढ़, सूखा, तूफान आदि प्राकृतिक स्रोतों के अंतर्गत आते हैं। 
2.    मानवीय स्रोत - मानवीय क्रियाओं से उत्पन्न प्रदूषकों के स्त्रोत निम्न प्रकार से हैं - 
•    खनन अपशिष्ट, 
•     औद्योगिक कचरे का निपटान, 
•     वाहित मल, 
•    नगरपालिका अपशिष्ट, 
•     परिवहन के साधन, 
•    तापीय स्त्रोत, 
•    घरेलू बहि:स्त्राव, 
•    रेडियोधर्मी अपशिष्ट, 
•    कृषि में घातक रसायन अपशिष्ट, 
•    खनिज तेल स्रोत, 
•    दहन क्रिया, 
•    अन्य सामाजिक क्रियाकलाप । 

पर्यावरण सुरक्षा के लिए विभिन्न प्रयास

पर्यावरण सुरक्षा के लिए हमें न केवल सामाजिक स्तर पर जागरूकता एवं अभिरुचि उत्पन्न करनी होगी बल्कि सामाजिक स्तर पर पर्यावरण बचाने के प्रयास करने होंगे । इसके लिए हमें क्षैत्रीय, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अभिरुचि के साथ भाग लेना होगा । प्रत्येक देश में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम, संगठन एवं संस्थाओं द्वारा पर्यावरण सुरक्षा संबंधी प्रयास होते हैं । हमें उनके साथ मिलकर अपने पर्यावरण की रक्षा करनी होगी । 

पर्यावरण सुरक्षा से संबंधित कुछ अंतरराष्ट्रीय संगठन एवं संस्थाएं

इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (ICUN) -

इसका मुख्यालय ग्लैंड (स्वीटज़रलैण्ड) मैं स्थित है । यह पर्यावरण तथा विकास से जुड़ी अधिकांश चुनौतियां के लिए व्यवहारिक समाधान विकसित करने के लिए कार्य करता है । यह विश्व का सबसे बड़ा व पुराना वैश्विक पर्यावरण नेटवर्क है । जिसमें 1000 से अधिक सरकारी एवं गैर सरकारी सदस्य संगठन है । 11000  से अधिक स्वयंसेवी वैज्ञानिक है । जो 160 से अधिक देशों में रहते हैं । 

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) -

यह पर्यावरण के दीर्घोपयोगी विकास के लिए, उचित पर्यावरणीय प्रयासों द्वारा पर्यावरण से संबंधित योजनाओं के विकास एवं क्रियान्वयन तथा आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने में सक्रिय है । UNEP का गठन संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा स्टॉकहोम (स्वीडन) मैं पर्यावरण के ऊपर हुई कान्फ्रेंस के परिणामस्वरूप हुआ था। इसका मुख्यालय  नैरोबी (केन्या) में स्थित है । 

यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) -

एक दशक से पूर्व संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण सम्मेलन में अधिकांश देश एक अंतरराष्ट्रीय संधि में सम्मिलित हुए तथा एकमत होकर मंथन किया कि ग्लोबल वार्मिंग अर्थात भूमंडलीय उष्णता को कम करने के लिए क्या किया जाना चाहिए तथा अपरिहार्य कारणों से कैसे तालमेल बैठाकर चलना चाहिए । हाल ही में कुछ देशों ने मिलकर संधि व समझौतों को लागू किया है । जिसमें एक ‘क्योटो प्रोटोकॉल' है । ‘क्योटो प्रोटोकॉल' एक अंतरराष्ट्रीय तथा कानूनी रूप से बाध्य करने वाला समझौता है । जिसमें विश्वभर में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने का लक्ष्य रखा गया है । यह समझौता औद्योगिकरण वाले देशों पर जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए काफी दबाव डालता है । क्योंकि यह देश ही भूत और वर्तमान के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के प्रमुख स्रोत हैं  ।  ‘क्योटो प्रोटोकॉल' के अंतर्गत विकसित, प्रगतिशील एवं विकासशील राष्ट्रों को पर्यावरण प्रबंधन हेतु उचित मानको पर खरे उतरने के लिए प्रतिबद्ध करने का प्रयास किया गया है । 

वर्ल्ड वाइड फण्ड फॅार् नेचर (WWF) -

यह एक अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन है। इस संगठन का निर्माण 11 सितंबर 1961 में स्विट्जरलैंड के मार्जेस में एक धर्मार्थ ट्रस्ट के रूप में हुआ था। जिसका नाम वर्ल्ड वाइड फंड रखा गया था । बाद में इस नाम को परिवर्तित कर 'वर्ल्ड वाइड फण्ड फॉर नेचर’ कर दिया । इसके संपूर्ण विश्व में 5 मिलियन से अधिक समर्थक 90 देशों में कार्य कर रहे हैं। यह विश्व में लगभग 1300 सरंक्षण व पर्यावरण से जुड़े प्रोजेक्टों पर कार्य कर रहा है । इसका प्रमुख लक्ष्य पर्यावरण को नष्ट होने से रोकना है । 

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