नमस्कार दोस्तों ! आज हम हिमालय (भाग – 2) पर चर्चा करेंगे । आशा करता हूं कि हिमालय के बारे में कुछ सामान्य जानकारी आप पहले पढ़ चुके हैं । तो चलिए आज हिमालय के प्रादेशिक वर्गीकरण के बारे पढ़ते हैं –
हिमालय का प्रादेशिक विभाजन
हिमालय का प्रादेशिक वर्गीकरण विद्वान सिडनी बुर्राड ने नदी घाटियों के द्वारा विभाजित क्षेत्रों के आधार पर किया गया है । जो इस प्रकार है –
1. 1. हिमाचल हिमालय - यह सिंधु वह सतलज नदियों के मध्य लगभग 570 किलोमीटर की लंबाई में विस्तृत है । इसका यह विस्तार कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश राज्य में स्थित है । जास्कर, लद्दाख, काराकोरम, पीर पंजाल एवं धौलाधार श्रेणियां शामिल है । बाल्टोरो एवं सियाचिन ठण्डे व बर्फिले इलाके यहीं अवस्थित है । इस प्रदेश का उत्तरी ढाल उबड़-खाबड़, निर्जन एवं शुष्क है जबकि दक्षिणी ढाल वनाच्छादित है । यहां हिमनदो की चिकनी मिट्टी व दूसरे पदार्थों का हिमोढ पर मोटी परत के रूप में जमाव है, जिसे ‘करेवा’ कहते हैं । करेवा पर केसर की खेती होती है । इसी प्रदेश में कश्मीर, कांगड़ा, लाहुल व स्पीति प्रमुख घाटियां तथा डल, राक्षसताल और मानसरोवर झीलें अवस्थित है । पीर पंजाल, जोजिला, रोहतांग, एवं बनिहाल यहां के प्रमुख दर्रे हैं ।
2. 2. कुमायूं हिमालय – इसका विस्तार सतलज नदी से काली नदी तक लगभग 320 किलोमीटर की लंबाई में उत्तराखंड राज्य में है । गंगा व यमुना नदियों के उद्गम स्थल इसी भाग में स्थित है । यह प्रदेश बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, जमुनोत्री आदि तीर्थ स्थलों के कारण प्रसिद्ध है । प्रसिद्ध फुलों की घाटी भी इसी प्रदेश में है । यहां शिवालिक व दून दो महत्वपूर्ण घाटियां हैं जिनमें प्रमुख दून चण्डीगढ़ – कालका का दून, नालागढ़ दून, देहरादून, हरिके दून व कोटा दून है । इनमें देहरादून सबसे बड़ी घाटी है । वृहत हिमालय में भोटिया प्रजाति के खानाबदोश लोग ग्रीष्मकाल में बुग्याल (ऊंचाई पर स्थित घास मैदान) में चले जाते हैं तथा शरद् ऋतु में घाटियों में लौट आते हैं । पर्वतीय क्षेत्रों में चलवासी पशुचारण का यह अनुपम उदाहरण है ।
3. 3. नेपाल हिमालय – इस प्रदेश का विस्तार काली नदी से तिस्ता नदी तक लगभग 800 किलोमीटर में विस्तार है । यह हिमालय का सबसे लंबा एवं सर्वाधिक ऊंचाई वाला प्रदेश है । इसका अधिकांश विस्तार नेपाल में होने के कारण इसे नेपाल हिमालय तथा सिक्किम राज्य में इसे सिक्किम हिमालय, पश्चिम बंगाल राज्य में दार्जिलिंग हिमालय तथा भूटान में इसे भूटान हिमालय के नाम से जाना जाता है । हिमालय का यह सर्वोच्च भाग है, जहां एवरेस्ट, कंचनजंगा, मकालू, धौलागिरि, अन्नपूर्णा आदि हिमाच्छादित चोटियां है । काठमांडू घाटी यहां की प्रमुख घाटी है । दार्जिलिंग हिमालय सुगन्धित चाय के उत्पादन हेतु विश्व प्रसिद्ध है ।
4. 4. असम हिमालय – इसका विस्तार तिस्ता नदी से ब्रह्मपुत्र नदी तक लगभग 740 किलोमीटर की लंबाई तक है । कांगतू व नामचा बरवा इस क्षेत्र की प्रमुख चोटियां है । यह घना वनाच्छादित क्षेत्र है । ब्रह्मपुत्र नदी गहरे गार्ज से से होकर बहती है । यहां कामेंग, सुनहरी, दिहांग, दिबांग एवं लोहित नदियां प्रवाहित होती है । इस क्षेत्र में अनेक जनजातियों का निवास है जो ‘झूम’ कृषि करती हैं ।
उपरोक्त के अतिरिक्त पूर्वी पहाड़ियों का क्षेत्र है । ये पहाड़ियां उत्तर से दक्षिण दिशा में विस्तृत हैं । उत्तर में पटकाई बूम, नागा पहाड़ियां, मणिपुर पहाड़ियां तथा दक्षिण में मिजो पहाड़ियों के नाम से जानी जाती है । यह कम ऊंचाई की पहाड़ियों का क्षेत्र है । बराक नदी मणिपुर तथा मिजोरम की प्रमुख नदी है । मणिपुर घाटी के मध्य में ‘लोकटक’ झील स्थित है । नागालैंड की नदियां ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियां हैं ।
हिमालय का महत्व
हिमालय पर्वत की भौतिक संरचना एवं स्थिति भारत के लिए अत्यंत उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण है । क्योंकि यह देश की उत्तरी एवं पूर्वी प्राकृतिक सीमा का निर्धारण करता है । उत्तरी सीमा को पारंपरिक रूप से बाह्य आक्रमण से सुरक्षित माना गया है परंतु वर्तमान में आधुनिक तकनीकी के कारण इतनी अभेदता नहीं रही है । अतः हमें सतर्क रहना पड़ता है । हिमालय एक उच्च पर्वतीय दीवार के रूप में होने के कारण उत्तर से आने वाली ठण्डी ध्रुवीय हवाओं से भी भारत की रक्षा करता है तथा भारतीय मौसमी परिस्थितियों में स्थायित्व प्रदान करता है । जिससे दक्षिण से आने वाली मानसूनी हवाएं हिमालय के उस पार नहीं जा पाती एवं संपूर्ण वृष्टी भारत में ही होती है । हिमालय की ऊंची पर्वत चोटियों से पिघला जल नित्यवाही नदियों के रूप में मैदानी क्षेत्र को सिंचित करता है तथा इसके जल के साथ आने वाली कांप मिट्टी मैदानी क्षेत्र में प्राकृतिक खाद का काम करती है । भारत का हिमालय क्षेत्र वन एवं वन्य जीव सम्पदा में धनी है । यहां के वनों में महत्वपूर्ण वृक्षों के अतिरिक्त अनेकों जड़ी बूटियां भी पाई जाती है । हिमालय की ढालों पर केसर, चाय, सेव व अन्य फलों की कृषि की जाती है । यहां अनेक रमणीय एवं स्वास्थ्यवर्धक स्थल है जो पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है ।
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