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पर्यावरण सुरक्षा और हम

वर्तमान के वैज्ञानिक युग में मनुष्य तीव्र गति से विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति कर रहा है । लेकिन इस दौरान उन परम्पराओं और मूल्यों को खो रहा है जिनका आधार भी विज्ञान ही रहा है । वे परम्पराऐं व मूल्य सनातन काल में मानव समाज के लिए उत्कृष्ट भी रहे हैैं । मैं यहां भारतीय संस्कृति में प्रकृति - पर्यावरण से जुड़ी हुई परम्पराओं व मूल्यों एवं भविष्य में पर्यावरण चेतना पर चर्चा करना चाहूंगा -


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विज्ञान के क्षेत्र में हुई प्रगति के दो पहलू हमें स्पष्ट परिलक्षित होते हैं, प्रथम - वैज्ञानिक अन्वेषणों ने अतीत की तुलना में मानव जीवन को बहुत आसान व उच्च बना दिया है । द्वितीय - वैज्ञानिक साधनों के प्रयोग से दूरगामी अद्भूत कठिनाईयां उत्पन्न हुई हैं, तथा हो रही है । द्वितीय पहलू चिंताजनक है । यहां एक छोटा - सा उदाहरण लेते हैं - किसान अपनी फसल के किसी रोग को खत्म करने व अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए कीटनाशक का उपयोग करता है, ऐसा करके वह फसल को रोगमुक्त कर लेता है । परन्तु उस कीटनाशक से मृदा पर्यावरण को अत्यधिक नुकसान पहुंचता है जैसे - मृदा के पोषक तत्वों का न केवल नष्ट होना बल्कि जहरीला होना । वह जहर भूगर्भिक जल को भी दूषित कर देता है । जिस कीटनाशक का उपयोग करते हैं उसका कुछ अंश फसल में रह जाता है और वह हमारी भोजन की थाली से होकर हमारे शरीर में प्रविष्ट होता है जो हमें बीमार बना देता है । तो अब समझ गये होंगे कि द्वितीय पहलू  क्यों चिंताजनक है ?

चलिए अब बात करते हैं पुराने समय की,  दोस्तों उस समय जनसंख्या कम थी । संसाधनों की कमी थी । व्यक्ती अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सीमित संसाधनों पर निर्भर था । तकनीकी ज्ञान का अभाव था । अतः मानव प्रकृति पर अधिक निर्भर था । वह प्रकृति के साथ अनुरुपता बनाते हुए था । वह प्रकृति के साथ अध्यात्मिक रुप से जुड़ कर कार्य करने लगा । उसने कुछ नियम भी बनाए । उन नियमों का अगली पीढ़ी ने अनुसरण किया । जो आज भी मानव समाज में दिखाई देते है । जैसे - वृक्ष पूजा, पेड़ों को देव स्वरुप में मानना आदि । 

अब वर्तमान की बात करें तो विज्ञान के क्षेत्र में मानव अग्रणी है तो हमें ऐसे सुधार करने की आवश्यकता है जिससे प्राकृतिक पर्यावरण को नुकसान न हो । मानव सभी प्रकार के संसाधनों का उपयोग करे व उनको वैज्ञानिकता की कसौटी पर मानवोपयोगी बनाये, परंतु उनसे बीमारियों की उत्पत्ति न हो । इसके लिए हमें भी अपने स्वार्थों को त्यागकर प्राकृतिक वातावरण की रक्षा के लिए कुछ सामान्य कार्य सम्पादित करने चाहिए, जैसे - अपने बच्चों को बचपन से ही पर्यावरण प्रेमी बनाना, पर्यावरण के अवनयन से होने वाले नुकसानों का उन्हें ज्ञान होना अति आवश्यक है । ऐसे प्रयास करें कि आने वाली पीढ़ी किताबी ज्ञान पर न चलकर आपके उत्तम संस्कारों का अनुसरण करे । वृक्षारोपण में उनकी तीव्र अभिरूचि हो, जीवों के प्रति उनमें दया भाव हो । प्राकृतिक परिवेश को हरा - भरा रखने की चेष्टा हो । वे किसी प्रकार का कार्य करें उसमें पर्यावरण का विशेष ध्यान रखें । इसके लिए पहले हमें स्वयं ऐसी अवधारणा बना कर उनके समक्ष प्रस्तुत होना होगा । तभी हमें भविष्य के सकारात्मक परिणाम दिखाई देंगें ।

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