प्रभुत्व संपन्न राज्य के यथार्थ प्रभाव की बाह्य सीमा ‘अंतर्राष्ट्रीय’ सीमा कहलाती है।

प्रत्येक राष्ट्र की अपनी - अपनी सीमाएं होती है। उन सीमाओं में वह राष्ट्र अपनी सर्वोच्च प्रभुसत्ता का उपयोग करता है। ये सीमाएं सैद्धांतिक रूप से पूर्णतः अवरुद्ध प्राचीर का कार्य करती है।  सीमाओं के बाहर के विश्व से समागम को बंद करती हैं। 
boundaries

विद्वानों के अनुसार सीमाएं अवरोध के रूप में होनी चाहिए। चाहे वे भौगोलिक या प्राकृतिक ना होकर राजनीतिक या मानवीय ही हों; तथा मजबूत सैन्य सुरक्षा से सज्जित होनी चाहिए।

ऐसा क्यों ?

इसलिए कि सीमाएं सैद्धांतिक रूप से अभेद्य होती है। परंतु मानवीय दृष्टिकोण से व्यापार, मनुष्य एवं विचारों के आदान - प्रदान हेतु कुछ हद तक सीमाओं को भेद रखा जाता है। कुछ अवैध तत्व जैसे तस्कर, अवैध घुसपैठ करने वाले, गुप्तचर आदि भी राज्य बाह्य सीमा पर सक्रिय होते हैं। जिनसे सुरक्षा के लिए सीमाओं का अभेद होना आवश्यक है।

सीमा ही क्यों निर्मित की जाती हैं-

अब प्रश्न यह उठता है कि इतने से कार्य के लिए विभिन्न देश एक बड़ी राशि सीमाओं की सुरक्षा के लिए क्यों खर्च करते हैं ? इन सीमाओं पर ऐसे कौन से कार्य होते हैं जिनके लिए इतनी धनराशि खर्च की जाती है ?

                     इसलिए कि सीमाओं के अपने कार्य होते हैं। वे कार्य संपादन हेतु बड़ी धनराशि की आवश्यकता पड़ती है। जिसमें सीमाओं की सुरक्षा, व्यापार अर्थात् वस्तुओं के आदान-प्रदान के अतिरिक्त राज्य की संप्रभुता सबसे महत्वपूर्ण होती है। जिसकी सुरक्षा के लिए इतना खर्च राज्य को उठाना पड़ता है। अन्यथा राज्य का अस्तित्व खत्म हो जाता है।

सीमाओं के कार्य:-

                       बोग्ज के अनुसार 'सीमा के कार्य व्यक्ति तथा वस्तुओं के संचरण से संबंधित होते हैं। इनके कार्यों में विचार पद्धति, उत्पादन के ढंग, युद्ध तकनीक एवं मानवीय जीवन के ढंग के साथ परिवर्तन होते रहते हैं।'
स्पाइकमैंन के अनुसार 'सीमा कार्यों को सैनिक एवं असैनिक भागों में विभक्त किया जा सकता है। यह कार्य परिवर्तनशील हो सकते हैं, परंतु इतनी सरलता से परिवर्तनशील भी नहीं हो सकते ।'
उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि सीमाओं की कई कार्य हैं। यह कार्य परिवर्तनशील भी हैं तथा इनमें परिवर्तन आसानी से नहीं किए जा सकते । उदाहरणार्थ 1853 ईस्वी से पूर्व जापान अपनी एक एकात्मवादी नीति के अनुसार सीमाओं को पूर्णतः अभेद रखा । परंतु 1853 ईस्वी में कोमोडोर पैरी ने प्रवेश किया तो जापान ने अपनी एकांतवादी नीति को त्याग कर पश्चिमी देशों की तरह बाहरी लोगों से व्यापारिक संबंध बनाना प्रारंभ किया ।

स्पाइकमैंन के अनुसार 'सीमा कार्यों को सैनिक एवं असैनिक भागों में विभक्त किया जा सकता है। यह कार्य परिवर्तनशील हो सकते हैं, परंतु इतनी सरलता से परिवर्तनशील भी नहीं हो सकते ।'
उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि सीमाओं की कई कार्य हैं। यह कार्य परिवर्तनशील भी हैं तथा इनमें परिवर्तन आसानी से नहीं किए जा सकते । उदाहरणार्थ 1853 ईस्वी से पूर्व जापान अपनी एक एकात्मवादी नीति के अनुसार सीमाओं को पूर्णतः अभेद रखा । परंतु 1853 ईस्वी में कोमोडोर पैरी ने प्रवेश किया तो जापान ने अपनी एकांतवादी नीति को त्याग कर पश्चिमी देशों की तरह बाहरी लोगों से व्यापारिक संबंध बनाना प्रारंभ किया ।

                              
                          सामान्यत है सीमाओं के कार्यों को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है –

1. सुरक्षात्मक कार्य –

                      सीमाओं का प्रमुख कार्य सुरक्षात्मक ही रहा है । प्राचीन समय में सुरक्षा ही इनका प्रमुख कार्य था । तब  तो सीमाओं की किलेबंदी की जाती थी । प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ कौटिल्य ने सीमाओं की दृढ़ता के लिए दुर्ग निर्माण पर विशेष बल दिया है । यदि सीमाओं की सुरक्षा नहीं हो पाती है तो राज्य का अस्तित्व धीरे-धीरे खत्म हो जाता है और वह एक संपूर्ण संप्रभु इकाई नहीं रह पाती है ।  चीन की दीवार ( जिसका निर्माण मंगोलियाई आक्रमण को रोकने के लिए किया गया था । ) इसका उत्तम उदाहरण है । पुराने समय में सैनिक आमने सामने मैदान में डट कर युद्ध करते थे परंतु वर्तमान में युद्ध हवाई हो गए हैं वायुयान, हेलीकॉप्टर एवं  मिसाइलों द्वारा युद्ध होने लगे हैं । अतः  सीमाओं के कार्य इस दृष्टि से इतने महत्वपूर्ण नहीं माने जा सकते । फिर भी सुरक्षात्मक कार्य महत्वपूर्ण होते हैं ।

2. अवरोधक कार्य –

                          सीमाएं सदैव अवरोध का कार्य करती हैं अर्थात कोई दूसरा देश आसानी से अंदर प्रवेश नहीं कर सकता । सीमाएं कई प्रकार की होती हैं, अतः अवरोधक क्षमता व दृढ़ता सीमा के प्रकार पर निर्भर करती है । सीमाओं के अवरोध के कारण ही कोई राज्य अपनी अलग पहचान बनाता है । कार्लसन के अनुसार  ‘अंतरराष्ट्रीय सीमा मानव वस्तु या मशीनरी की गति को रोकने में विस्तृत महासागरों उच्च पर्वतों एवं शुष्क मरुस्थल से अधिक प्रभावशाली हैं ।'

3. कर संग्रहण कार्य –

                                 सभी राज्य अपने आंतरिक लाभ हेतु सीमा शुल्क को अधिक मजबूत बनाने का प्रयास करते हैं । देश के उत्पादन को बढ़ाने हेतु विदेशी माल पर तटकर या प्रवेश शुल्क लगाया जाता है । इसके द्वारा बाहर से आने वाला माल बाहर ही रोक दिया जाता है तथा देश का माल बाहर नहीं जाने दिया जाता है जब तक कि उस पर शुल्क वसूल न कर लिया जाए ।

4. आवागमन एवं व्यापार कार्य –

                               सीमा का एक यह भी कार्य है कि लोगों के आवागमन तथा व्यापार को बढ़ावा देती है । इसके द्वारा विभिन्न संस्कृतियों का मेल होता है । लोगों की आवश्यकताएं पूर्ण होती है एवं मानवीय जीवन में सरलता आती है ।

5. कानूनी कार्य –

                               एक राज्य के कानून उस राज्य की सीमा तक लागू होते हैं । राज्य की परिधि में रहने वाले व्यक्तियों को कानूनों का पालन करना होता है । इस सीमा के बाहर कानून लागू नहीं होते ।
प्रत्येक राष्ट्र की अपनी - अपनी सीमाएं होती है। उन सीमाओं में वह राष्ट्र अपनी सर्वोच्च प्रभुसत्ता का उपयोग करता है। ये सीमाएं सैद्धांतिक रूप से पूर्णतः अवरुद्ध प्राचीर का कार्य करती है। सीमाओं के बाहर के विश्व से समागम को बंद करती हैं।
प्रत्येक राष्ट्र की अपनी - अपनी सीमाएं होती है। उन सीमाओं में वह राष्ट्र अपनी सर्वोच्च प्रभुसत्ता का उपयोग करता है। ये सीमाएं सैद्धांतिक रूप से पूर्णतः अवरुद्ध प्राचीर का कार्य करती है। सीमाओं के बाहर के विश्व से समागम को बंद करती हैं।