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उधोगों की स्थापना

 उद्योगों की स्थापना कैसे होती है ? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है; चलिए इस पर चर्चा करते हैं -

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उद्योग की स्थिति (Location) बहुत ही महत्वपूर्ण तथ्य होती है। किसी भी प्रकार के उद्योग की स्थापना या स्थिति भौगोलिक परिवेश का ही परिणाम होती है । दूसरे शब्दों में यह कहा जाए कि किसी विशेष प्रकार का एक उद्योग कहां स्थापित किया जाये, तो इसका निर्धारण भौगोलिक परिवेश करता है । क्योंकि उद्योग अपने आकार (Size), कार्य (Function) एवं इनके आपसी सम्बन्ध जैसी विशेषताओं से युक्त होते हैं । जैसे – आकार के आधार पर उधोगों को वृहत, लघु एवं कुटीर उद्योगों की श्रेणी में रखा जाता है । इनके कार्य  भी भिन्न – भिन्न होते हैं धागा बनाना,  मशीन बनाना व सिमेंट बनाना आदि । इसी प्रकार आपस में संबद्धता भी रखते हैं जैसे धागा बनाने वाला उधोग कपड़ा नहीं बनाता । अतः कपड़ा बनाने वाले उधोग धागा बनाने वाले उधोग से सबद्ध होते हैं । इस प्रकार एक उद्योग का निर्मित माल दूसरे उद्योग के लिए कच्चा माल हो सकता है।
                           उपरोक्त विवरण अनुसार स्पष्ट है कि उद्योग की स्थापना करने के लिए यह आवश्यक है कि एक उद्योग ऐसे स्थान पर स्थापित किया जाए जहां अधिकतम लाभ की स्थिति हो । यदि लाभदायक स्थिति नहीं है तो उद्योग चलेगा नहीं । जिससे आर्थिक नुकसान होगा । ऐसे में उद्योग  की स्थापना से पहले आदर्श एवं लाभदायक स्थिति का चुनाव आवश्यक है । आदर्श एवं लाभदायक स्थिति निर्धारण के लिए निम्नलिखित तथ्यों को सबसे पहले देखा जाता है –

1. कच्चा माल एवं ऊर्जा स्रोत

प्रत्येक उद्योग का सबसे महत्वपूर्ण कार्य कच्चे माल को रूपांतरित कर वस्तुएं निर्मित करना होता है । जिसका मूल्य कच्चे माल की अपेक्षा अधिक होता है । इस कार्य के लिए उद्योग की स्थापना एक ऐसे स्थान पर होनी चाहिए, जहां कच्चे माल की सुलभता या प्रचुरता हो । उद्योगों को कच्चा माल कृषि, वन, एवं खनन क्षेत्रों से प्राप्त होता है । कच्चे माल की मात्रा (Quantity) तथा किस्म (Quality) महत्वपूर्ण होती है । अतः कच्चा माल भी उद्योग की स्थिति को प्रभावित करता है । यथा-
             A.    कच्चे माल की कीमत इसके वजन से कम होती है तो परिवहन लागत अधिक होती है ।
          B.    वास्तु निर्माण प्रक्रिया में वजन में अधिक कमी आती हो तो ऐसे उद्योग परिवहन लागत में कमी के उद्देश्य से कच्चे माल की प्राप्ति वाले स्थानों पर लगाए जाते हैं ।
                           इसी प्रकार उद्योगों के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है अतः ऊर्जा प्राप्ति स्थलों के निकट ही उधोग स्थापित होते हैं ।

2.    बाजार

वस्तु निर्मित होने के तुरंत पश्चात् उपभोक्ताओं तक पहुंचानी होती है, इसका माध्यम है बाजार । उद्योग में तैयार माल की खपत होती रहेगी तभी उद्योग चल सकेगा । अन्यथा वस्तुओं की खपत न होने से निर्मित माल पड़ा रहेगा । अतः लाभदायक स्थिति के लिए आवश्यक है कि उत्पादित माल की उस क्षेत्र विशेष में मांग हो तथा बाजार में अच्छी खपत हो । ऐसे स्थान पर उद्योग स्थापित किया जा सकता है । उद्योगों की स्थापना के लिए बाजार का अत्यधिक महत्व है । जिन वस्तुओं के उत्पादन में कम व्यय होता है तथा वस्तुएं हल्की होती हैं, उन पर परिवहन व्यय कम होता है । लेकिन कुछ वस्तुएं जिनका उत्पादन करने के पश्चात् वजन बढ़ जाता है व परिवहन व्यय अधिक होता है, उनके लिए बाजार निकट ही होना चाहिए । अन्यथा परिवहन व्यय अधिक आता है ।

3.    परिवहन लागत

उद्योगों से तैयार माल के परिवहन या बाजार तक पहुंचाने में अधिक परिवहन व्यय होता है या कच्चे माल को ढोने में परिवहन में अधिक होता है । तो यह उद्योग पर अतिरिक्त भार होता है । इस प्रकार उद्योग लाभदायक स्थिति में स्थापित करने के लिए न्यूनतम परिवहन लागत वाले स्थल का चुनाव किया जाता है ।

4.  श्रमिक

श्रमिक उद्योग की आत्मा होती है । क्योंकि कुशल श्रमिकों की बड़ी आवश्यकता होती है । जो उत्तम कार्य को संपन्न करते हैं । कुछ उद्योगों में उनकी कुल लागत का लगभग 60% तक हिस्सा श्रमिकों का होता है । सभी श्रमिक प्रत्येक कार्य में दक्ष नहीं होते । अत: स्पष्ट है कि कोई भी उद्योग श्रमिकों से दूर स्थापित नहीं किया जा सकता । एक लाभदायक स्थिति वाले उद्योग के लिए उसी क्षेत्र में कुशल व दक्ष श्रमिकों का होना आवश्यक है ।

5.    सरकारी नीतियां

तकनीक, नवाचार एवं राजस्व वृद्धि के साथ-साथ उपभोक्ताओं की जरूरतों को पूर्ण करने का कार्य सरकार का होता है । अतः सरकार उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए अनुकूल नीति का निर्माण करती है । सरकारी नीति व कार्यविधि उद्योगों को प्रोत्साहन देने में प्रमुख भूमिका निभाती है । सरकारी प्रोत्साहन न मिलने पर वह अपना विस्तार नहीं कर सकते तथा उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ता है । लाभदायक आर्थिक स्थिति में न होने पर उद्योग बंद हो जाते हैं ।

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