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राजनीतिक विज्ञान : प्रकृति व क्षेत्र

राजनीतिक विज्ञान की प्रकृति एवं क्षेत्र

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1. राजनीतिक विज्ञान की प्रकृति:

राजनीतिक विज्ञान एक सामाजिक विज्ञान है, जो सत्ता, राज्य, सरकार, सार्वजनिक नीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का अध्ययन करता है। यह मानव जीवन के उस हिस्से को समझने का प्रयास करता है, जहां लोग विभिन्न समूहों में संगठित होते हैं और उनके बीच निर्णय लेने और संसाधनों के वितरण की प्रक्रिया होती है। यथा - 

  • सामाजिक विज्ञान का हिस्सा: यह सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में आता है क्योंकि यह मानव समाज और उसकी संरचना के बारे में अध्ययन करता है।
  • सिद्धांत और व्यवहार: राजनीतिक विज्ञान केवल सिद्धांतों का अध्ययन नहीं करता, बल्कि राजनीति के व्यवहारिक पक्ष को भी देखता है।
  • मूल्य-तटस्थता: राजनीतिक विज्ञान का उद्देश्य वस्तुनिष्ठ और तटस्थ अध्ययन करना होता है। इसका अध्ययन किसी विशेष राजनीतिक विचारधारा के पक्ष या विरोध में नहीं होता।
  • गतिशीलता: राजनीति का स्वरूप और इसकी प्रक्रियाएँ समय के साथ बदलती रहती हैं। इसलिए, राजनीतिक विज्ञान एक गतिशील अनुशासन है, जो लगातार बदलते हुए राजनीतिक परिवेश के साथ तालमेल बिठाता है।
  • मल्टीडिसिप्लिनरी: यह अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, इतिहास आदि विभिन्न अनुशासनों से जुड़ा हुआ है।

2. राजनीतिक विज्ञान का क्षेत्र:

राजनीतिक विज्ञान का क्षेत्र बहुत व्यापक है। यह विभिन्न उपक्षेत्रों में विभाजित होता है, जो निम्नलिखित हैं:

(A) राज्य और सरकार:

राजनीतिक विज्ञान का प्रमुख क्षेत्र राज्य और सरकार के अध्ययन से संबंधित है। इसमें राज्य की उत्पत्ति, स्वरूप, उद्देश्यों, कार्यों और शक्तियों का अध्ययन किया जाता है। इसके अलावा, विभिन्न प्रकार की सरकारों (जैसे लोकतंत्र, तानाशाही, राजतंत्र) का विश्लेषण किया जाता है।

(B) सत्ता और अधिकार:

राजनीतिक विज्ञान में सत्ता और अधिकार का अध्ययन महत्वपूर्ण है। यह सत्ता के स्रोत, प्रकार और उनके उपयोग के तरीकों को समझने का प्रयास करता है। सत्ता कैसे प्राप्त होती है, उसका प्रयोग कैसे किया जाता है और उसके परिणाम क्या होते हैं, ये सभी अध्ययन का हिस्सा होते हैं।

(C) संविधान और कानून:

राजनीतिक विज्ञान में विभिन्न देशों के संविधानों और उनके कानूनों का अध्ययन भी किया जाता है। संविधान वह दस्तावेज है, जो राज्य के प्रमुख ढांचे और नागरिकों के अधिकारों को निर्धारित करता है। इस क्षेत्र में संविधान की संरचना, उसकी व्याख्या और उसमें किए गए संशोधनों का विश्लेषण किया जाता है।

(D) अंतर्राष्ट्रीय संबंध:

यह राजनीतिक विज्ञान का एक प्रमुख उपक्षेत्र है, जिसमें विभिन्न देशों के बीच के राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों का अध्ययन किया जाता है। इसके अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय संगठनों (जैसे संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन) और अंतर्राष्ट्रीय कानून का भी विश्लेषण किया जाता है।

(E) सार्वजनिक नीति और प्रशासन:

राजनीतिक विज्ञान में सार्वजनिक नीतियों और प्रशासन का अध्ययन भी किया जाता है। इसमें सरकार की नीतियों के निर्माण और उनके क्रियान्वयन की प्रक्रिया का विश्लेषण किया जाता है। इसके अलावा, सरकारी संस्थानों और उनके कार्यों का भी अध्ययन किया जाता है।

(F) राजनीतिक विचारधाराएँ:

राजनीतिक विज्ञान का एक अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं (जैसे समाजवाद, पूंजीवाद, साम्यवाद, फासीवाद) का अध्ययन है। यह समझने का प्रयास करता है कि विभिन्न विचारधाराएँ समाज और राजनीति को किस प्रकार प्रभावित करती हैं।

(G) चुनाव और मतदाता व्यवहार:

इसमें चुनावी प्रक्रिया, राजनीतिक दलों, मतदाता व्यवहार और चुनावी प्रणाली का अध्ययन किया जाता है। इसमें यह भी देखा जाता है कि चुनाव किस प्रकार सत्ता के हस्तांतरण और सरकार के गठन का एक साधन बनते हैं।

3. राजनीतिक विज्ञान के परम्परागत एवं आधुनिक दृष्टिकोण:

राजनीतिक विज्ञान के अध्ययन में दो प्रमुख दृष्टिकोणों को देखा जा सकता है: पारंपरिक दृष्टिकोण और आधुनिक दृष्टिकोण। दोनों दृष्टिकोणों का राजनीतिक विषयों को समझने और विश्लेषण करने के तरीके अलग-अलग हैं। आइए इन दोनों दृष्टिकोणों को विस्तार से समझते हैं:

1. परम्परागत दृष्टिकोण (Traditional Approach)

परंपरागत दृष्टिकोण मुख्य रूप से राजनीतिक संस्थाओं, संवैधानिक प्रक्रियाओं और राज्य की संरचना पर केंद्रित होता है। इसका उद्देश्य राजनीतिक संस्थाओं और उनके कार्यों का वर्णन और विश्लेषण करना है।

विशेषताएँ:

  • सांस्थानिक अध्ययन: परंपरागत दृष्टिकोण में राजनीतिक संस्थाओं जैसे राज्य, सरकार, संसद, न्यायपालिका, नौकरशाही आदि का अध्ययन किया जाता है।
  • विधिक-संवैधानिक दृष्टिकोण: इस दृष्टिकोण में संवैधानिक नियमों और विधियों का अध्ययन प्रमुख है। इसमें राज्य के संवैधानिक ढांचे और कानूनी प्रक्रियाओं का विश्लेषण किया जाता है।
  • आदर्शवादी दृष्टिकोण: परंपरागत दृष्टिकोण अक्सर आदर्शवादी होता है। यह मानता है कि राजनीतिक संस्थाएँ और प्रक्रियाएँ नैतिक और आदर्श मूल्यों के आधार पर संचालित होती हैं।
  • सिद्धांतवादी अध्ययन: परंपरागत दृष्टिकोण में राजनीतिक सिद्धांतों का गहन अध्ययन किया जाता है। यह प्लेटो, अरस्तू, मैकियावेली, हॉब्स, लॉक, रूसो जैसे दार्शनिकों के विचारों पर आधारित होता है।
  • मानवतावादी दृष्टिकोण: इसमें मानवीय मूल्य, नैतिकता और न्याय पर जोर दिया जाता है, और राजनीति को एक नैतिक और आदर्श व्यवहार के रूप में देखा जाता है।
  • ऐतिहासिक दृष्टिकोण: पारंपरिक दृष्टिकोण में ऐतिहासिक घटनाओं और उनके प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। इसमें राज्य और समाज की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखकर विश्लेषण किया जाता है।

सीमाएँ:

  • वास्तविकता से दूरी: परंपरागत दृष्टिकोण कभी-कभी वास्तविक राजनीतिक प्रक्रियाओं और व्यवहार को समझने में असमर्थ हो जाता है क्योंकि यह आदर्शवादी होता है।
  • संकीर्णता: यह दृष्टिकोण केवल संस्थाओं और विधियों पर ध्यान केंद्रित करता है, और समाज के अन्य पहलुओं को नजरअंदाज करता है।
  • अनुभवजन्य विश्लेषण की कमी: इसमें अनुभवजन्य डेटा और वैज्ञानिक विधियों का उपयोग कम होता है, जो राजनीति के वास्तविक व्यवहार को समझने के लिए आवश्यक है।

2. आधुनिक दृष्टिकोण (Modern Approach)

आधुनिक दृष्टिकोण, जिसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी कहा जाता है, राजनीति का अध्ययन अधिक अनुभवजन्य, वस्तुनिष्ठ और विश्लेषणात्मक तरीके से करता है। यह दृष्टिकोण द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विकसित हुआ और इसे व्यवहारवाद (Behaviouralism) के उदय के साथ जोड़ा जाता है।

विशेषताएँ:

  • व्यवहारवादी दृष्टिकोण: आधुनिक दृष्टिकोण में राजनीतिक संस्थाओं के बजाय राजनीतिक प्रक्रियाओं और राजनीतिक व्यवहार पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। यह दृष्टिकोण व्यक्ति और समूह के व्यवहार के आधार पर राजनीति का अध्ययन करता है।
  • अनुभवजन्य और वैज्ञानिक विधियाँ: आधुनिक दृष्टिकोण में अनुभवजन्य डेटा और वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग किया जाता है। इसमें सांख्यिकीय विधियों, सर्वेक्षणों और केस स्टडी का प्रयोग किया जाता है।
  • अंतर-विषयक अध्ययन: यह दृष्टिकोण राजनीतिक विज्ञान को अन्य सामाजिक विज्ञानों जैसे समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान आदि के साथ जोड़ता है। इसका उद्देश्य राजनीति को व्यापक सामाजिक संदर्भ में समझना है।
  • व्यवस्था सिद्धांत (Systems Theory): यह सिद्धांत राजनीति को एक प्रणाली के रूप में देखता है, जिसमें इनपुट और आउटपुट के रूप में विभिन्न तत्व होते हैं। डेविड ईस्टन का प्रणाली सिद्धांत इसका प्रमुख उदाहरण है।
  • संरचनात्मक-कार्यात्मक दृष्टिकोण (Structural-Functional Approach): इस दृष्टिकोण में यह देखा जाता है कि विभिन्न राजनीतिक संस्थाएँ और प्रक्रियाएँ किस प्रकार राज्य के कार्यों को पूरा करती हैं।
  • व्यक्तिगत और सामूहिक व्यवहार: आधुनिक दृष्टिकोण में मतदाता व्यवहार, राजनीतिक दल, समूह, विचारधाराएँ और सत्ता के उपयोग का अध्ययन किया जाता है।
  • तथ्य-आधारित विश्लेषण: आधुनिक दृष्टिकोण में तथ्यों और आंकड़ों के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं। इसका उद्देश्य राजनीति के वास्तविक और ठोस पहलुओं को समझना होता है।

उप-क्षेत्र:

  • व्यवहारवादी दृष्टिकोण: व्यक्ति और समूह के राजनीतिक व्यवहार का विश्लेषण।
  • प्रणाली सिद्धांत: डेविड ईस्टन के अनुसार, राजनीति को एक प्रणाली के रूप में देखा जाता है, जो इनपुट और आउटपुट के आधार पर कार्य करती है।
  • संरचनात्मक-कार्यात्मक दृष्टिकोण: गेब्रियल आल्मोंड के अनुसार, यह दृष्टिकोण यह देखता है कि राजनीतिक संरचनाएँ किस प्रकार कार्य करती हैं और उनका सामाजिक भूमिका क्या है।

सीमाएँ:

  • अधिक अनुभवजन्य दृष्टिकोण: यह दृष्टिकोण कभी-कभी नैतिक और आदर्शवादी पहलुओं को नजरअंदाज करता है और केवल अनुभवजन्य डेटा पर आधारित होता है।
  • नैतिकता की उपेक्षा: इस दृष्टिकोण में नैतिक और आदर्शवादी सिद्धांतों को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता।
  • कठिनाई: यह दृष्टिकोण बहुत अधिक तकनीकी और जटिल हो सकता है, क्योंकि इसमें सांख्यिकीय विधियों और वैज्ञानिक तरीकों का प्रयोग किया जाता है।

सारांश:

परंपरागत और आधुनिक दृष्टिकोण, दोनों ही राजनीतिक विज्ञान के अध्ययन के महत्वपूर्ण तरीकों को दर्शाते हैं। परंपरागत दृष्टिकोण राजनीतिक संस्थाओं और सिद्धांतों पर केंद्रित होता है, जबकि आधुनिक दृष्टिकोण अनुभवजन्य डेटा और व्यवहार के अध्ययन पर जोर देता है। दोनों दृष्टिकोणों के अपने फायदे और सीमाएँ हैं, और इन्हें साथ में मिलाकर राजनीति को गहराई से समझा जा सकता है।

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