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हिमालय (भाग - 1)

नमस्कार दोस्तों ! आज हम हिमालय की चर्चा करेंगे । हिमालय के बारे में कुछ सामान्य जानकारी पहले पढ़ चुके हैं । तो चलिए आज हिमालय के बारे में और अधिक जानते हैं 

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हिमालय की उत्पत्ति

हिमालय पर्वत विश्व की नवीनतम वलित पर्वतमाला का उदाहरण है । इसकी उत्पत्ति लगभग सात करोड़ वर्ष पहले ‘'पूर्व मध्यजीवी महाकल्प में हुई मानी गई है । तात्कालिक समय हिमालय के स्थान पर ‘टेथीस सागर' नामक भू – अभिनति हुआ करती थी । इस भू – अभिनति के उत्तरी भाग में अंगारालैण्ड व दक्षिण भाग में गौंडवानालैण्ड नामक स्थलीय भाग थे । मध्यजीवी महाकल्प के अंत में भू – गर्भिक हलचलों के कारण उपर्युक्त दोनों भूखण्ड एक-दूसरे के निकट आने लगे जिसके कारण टेथिस सागर की तलछट में सम्पीडन बल उत्पन्न होने लगा तथा धीरे-धीरे तलछट में वलयाकार मोड़ पड़ कर वर्तमान हिमालय निर्मित हुआ ।

स्थिति

हिमालय पर्वत अफगानिस्तान के बलूचिस्तान से म्यांमार के अराकान योमा तक लगभग 2400 किलोमीटर में तलवार की आकृति में फैला हुआ है । इसकी 240 से 320 किलोमीटर चौड़ाई है तथा लगभग पांच लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तार है । यह भारत की उत्तरी सीमा पर स्थित है ।

हिमालय का प्राकृतिक विभाजन

प्राकृतिक रूप से हिमालय को निम्न चार पर्वत श्रेणियों में विभक्त किया जाता है 

1.       महान् हिमालय

2.       लघु हिमालय

3.       शिवालिक हिमालय या उप हिमालय

4.       ट्रांस हिमालय या तिब्बत हिमालय ।

1.   1. महान् हिमालय – इसे मुख्य हिमालय, वृहद हिमालयहिमाद्री तथा आंतरिक हिमालय आदि नामों से भी जाना जाता है । यह हिमालय का सबसे प्राचीनसबसे लंबा व सबसे ऊंचा भाग है । यह सिंधु नदी के मोड़ से ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक अवस्थित है । इसकी औसत ऊंचाई 6000 मीटर है । इस पर्वत श्रृंखला में विश्व की सर्वोच्च पर्वत चोटियां अवस्थित हैं । माउंट एवरेस्ट (नेपाल) गोडविन ऑस्टिनकंचनजंगा, नंगा पर्वतअन्नपूर्णानंदा देवी तथा राकापोशी इस श्रेणी की प्रमुख चोटियां हैं । ये पर्वत शिखर वर्ष भर हिमाच्छादित रहती हैं । काराकोरमजोजिलाशिपकीलाजेलेप्ला आदि महत्वपूर्ण दर्रे हैं ।

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2.  2. लघु हिमालय – यह पर्वत श्रृंखला महान् हिमालय से महान भ्रंश रेखा द्वारा पृथक होती है । यह शिवालिक तथा महान हिमालय के मध्य होने के कारण इसे ' मध्य हिमालय' भी कहा जाता है । इसकी औसत ऊंचाई 4500 मीटर तथा चौड़ाई 80 से 100 किलोमीटर तक है । यह केवल शीतकाल में ही हिमाच्छादित रहता है । नैनीतालमंसूरी,  चकराताशिमलारानीखेतअल्मोड़ादार्जिलिंग इत्यादि स्वास्थ्यवर्धक स्थल यहीं स्थित हैं । धौलाधारनागटिब्बा पीर पंजालआदि इस क्षेत्र की प्रमुख चोटियां हैं । यहां कई प्रकार  नुकीली पत्ती व मुलायम लकड़ी के कोणधारी वन है जिनमें चीड़देवदारस्प्रुस, फरयुनिफर आदि वृक्ष पाये जाते हैं जो कागज़ व फर्नीचर निर्माण में उपयोगी हैं । लघु हिमालय के ढालों पर घास के मैदान पाये जाते हैं जिन्हें कश्मीर में ‘मर्ग’ (सोनमर्ग तथा गुलमर्ग) एवं उत्तराखंड में ‘बुग्यार या बयार' कहते हैं ।

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3.  3. शिवालिक हिमालय या उप हिमालय  यह दक्षिणी हिमालय का निचला प्रदेश है जिसे ‘बाह्य हिमालय' भी कहा जाता है । इसकी औसत ऊंचाई 1000 मीटर तथा चौड़ाई 8 से 48 किलोमीटर है । लघु हिमालय तथा शिवालिक के मध्य अनेक समतल घाटियां हैं जिन्हें पूर्व में ‘द्वार’ तथा पूर्व में ‘दून’ कहा जाता है । हरिद्वार तथा देहरादून इसी क्षेत्र में स्थित है । शिवालिक श्रेणी लगातार न होकर टुकड़ों में विभक्त है । इस क्षेत्र से निकलने वाली नदियां कंकड़पत्थर व जलोढ पंक का निर्माण करती हैजिसे ‘भाबर’ कहते है । भाबर का दक्षिणी भाग ‘तराई’ कहलाता है । यह हिमालय के बाहर की पर्वत श्रेणी होने के कारण हिमालय की अंतिम श्रेणी है । इसके दक्षिण में उतर का विशाल मैदान है ।

4.  4.  ट्रांस हिमालय या तिब्बत हिमालय -  यह हिमालय का सबसे उत्तरी भाग है । इसकी औसत ऊंचाई 3100 मीटरचौड़ाई मध्य में 225 किलोमीटर तथा किनारों पर 40 किलोमीटर है । ट्रांस हिमालय की लंबाई 965 किलोमीटर है । इसके अंतर्गत काराकोरमकैलाशजास्कर एवं लद्दाख पर्वत श्रेणियां हैं । काराकोरम पामीर ग्रंथि का विस्तार है । सियाचिनबाल्टोरोबियाफो व हिस्पार आदि हिमनद इसी पर्वत श्रृंखला में हैं ।

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