नमस्कार दोस्तो,
आज हम चर्चा करेंगे पृथ्वी के भू-वैज्ञानिक इतिहास के संबंध में क्योंकि आप ये जानते है कि पृथ्वी का यही वर्तमान स्वरुप पुरातन काल में नहीं था। आज का स्वरुप भविष्य में रहेगा ऐसा भी नहीं कहा जा सकता। हमारी पृथ्वी में ऐसे असंख्य दस्तावेज है जो पृथ्वी की प्राचीन परिस्थितियां बता देते हैं। उन दस्तावेजों में जीवाश्मों का प्रथम स्थान है। विश्वभर के वैज्ञानिक अपने विभिन्न शोधकार्यों द्वारा यह बताने में सक्षम हैं कि ये जीवाश्म कितने वर्ष पुराने है। आप और हम में से बहुत सारे लोग C14 पद्धति के बारे में जानते हैं परन्तु आज भी बहुत सारे लोग इस पद्धति के बारे में नहीं जानते हैं। इस पद्धति से जीवाश्मों व शैलों की आयु का पता लगाया जाता है।अधिकांश लोग ऐसे भी हैं जो आज भी धार्मिक ग्रन्थों की कहानियों पर आधारित पृथ्वी उत्पति व विकास की व्याख्या करते है एवं सत्य बताते हैं। जिसमें तार्किकता, शोध एवं वैज्ञानिकता का अंश रत्तीभर भी नहीं है।
चलिए पहले मैं आपको बता दूँ कि पृथ्वी की प्राचीनतम शैलों के अध्ययन से पता चला है कि भू-पटल पर जीवन का सूत्रपात 100 से 150 करोड़ वर्ष पहले हुआ है। परन्तु पृथ्वी पर या भूगर्भ में जो जीवाश्म पाए गए हैं वे 50 करोड़ वर्ष से अधिक पुराने नहीं हैं। पृथ्वी के इतिहास को सबसे पहले एक फ्रांसीसी विद्वान बफन द्वारा 7 युगों में विभाजित कर बताया था। वर्तमान समय में पृथ्वी के अस्तित्व में आने के पश्चात से भू-पटल पर हुए विभिन्न बदलाव,स्थलरूपों एवं स्थलाकृतियों के विकास, जीव-जंतुओं व वनस्पतियों के विकास की प्रक्रिया विभिन्न कालखंडो एवं युगों से निश्चित क्रम से जारी है तथा ये जारी रहेगी। वर्तमान समय में पृथ्वी के इतिहास को 5 महाकल्पों (Eras) तथा 17 युगों (Periods) में समझाया जाता है।
क्र.सं.
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महाकल्प
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कल्प
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प्रारम्भ होने का समय (पूर्व)
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1.
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आद्य
महाकल्प (Eozoic Era)
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1. आर्कियन
(Archaean)
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2. पुरा कैम्ब्रियन या एलगोनिकन
(Pre-Cambrian Algonican)
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लगभग
250 करोड़ वर्ष
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2.
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पुराजीव
महाकल्प
(Palaeozoic Era)
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1. कैम्ब्रियन (Cambrian)
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60.0 करोड़ वर्ष
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2. ऑर्डोविसियन
(Ordovician)
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50.0 करोड़ वर्ष
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3. सिल्यूरियन
(Silurian)
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44.0 करोड़ वर्ष
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4. डेवोनियन
(Devonian)
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40.0 करोड़ वर्ष
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5. कार्बोनीफेरस
(Carboniferous)
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35.0 करोड़ वर्ष
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6. पर्मियन
(Permian)
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27.0 करोड़ वर्ष
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3.
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मध्य
जीव महाकल्प (Mesozoic
Era)
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1. ट्रियासिक
(Triassic)
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22.0 करोड़ वर्ष
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2. जुरासिक
(Jurassic)
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18.0 करोड़ वर्ष
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3. क्रिटेशस
(Cretaceous)
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13.50 करोड़ वर्ष
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4.
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नवजीव
महाकल्प (Kainozoic or Tertiary Era)
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1. इओसीन
(Eocene)
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7.0 करोड़ वर्ष
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2. ओलीगोसीन
(Oligocene)
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4.0 करोड़ वर्ष
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3. मायोसीन
(Miocene)
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2.0 करोड़ वर्ष
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4. प्लायोसीन
(Pliocene)
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1.10 करोड़ वर्ष
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5.
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नूतन
महाकल्प (Neozoic or Quaternary Era)
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1. प्लीस्टोसीन
(Pleistocene)
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10.0 लाख वर्ष
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2. होलोसीन
(Holocene)
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10.0
हजार वर्ष
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1. प्राचीनतम या आद्य महाकल्प :
भूपटल की विभिन्न शैलों का निर्माण इसी महकल्प में हुआ था । यह सबसे लंबी अवधि वाला महाकल्प था । भूपृष्ठ अत्यधिक वर्षा के कारण इसी महाकल्प के प्रारंभिक समय में ठण्डा हुआ था, अत: इस अवधि में वनस्पति एवं जीवों का लगभग पूर्णतः अभाव रहा । समुद्री जल खारा नहीं था ।
इस महाकल्प में विभिन्न भूगर्भिक हलचलों के कारण अवसादों के निक्षेप में वलन पड़े । कहीं कहीं दरारों से लावा प्रवाह हुआ, जिससे पर्वतीकरण की प्रक्रिया हुई । इस महाकल्प में कुल पांच बार पर्वतीकरण की प्रक्रियाएं हुई । अंतिम बार चारनियन भूसंचलन के साथ इस महाकल्प का अंत हुआ । उस समय के पर्वत अपरदित होने के कारण वर्तमान में दृष्टिगोचर नहीं है । रेडियो एक्टिव तत्वों के प्रभाव के अनुसार इन पर्वतों की आयु लगभग 100 करोड़ वर्ष है ।
इस महाकल्प में पैंजिया नामक विशाल भूखण्ड का लारेंशिया शील्ड, बाल्टिक शील्ड, अंगारालैंड एवं गोंडवाना लैण्ड में विभाजन हुआ । भारत में धारवाड़, कुडप्पा एवं विंध्य क्रम की शैलों का निर्माण हुआ ।
2. पुराजीवी महाकल्प :
यह महाकल्प सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी महाकल्प के समय पृथ्वी पर पहली बार रीढ़विहीन जीवों व घास के रूप में वनस्पति का उद्भव हुआ । साथ ही इस युग में महाद्वीपों पर सागरों का अतिक्रमण हुआ था । इस महाकल्प को निम्न छः युगों में बांटा गया है -
(क) कैम्ब्रियन युग ( Cambrian Period ) : इस युग में ठोस भूपटल का निर्माण हुआ । सागरों का निर्माण भी इसी युग की देन हैं । इस युग में निर्मित चूना एवं बालुका पत्थरों की शैलों में प्रथम जीवावशेष (Fossils) पाये जाते हैं ।
(ख) ऑर्डोविसियन युग (Ordovician Period) : यह युग ज्वालामुखी उद्गार, बड़े पैमाने पर महाद्वीपों पर सागरों के फैलाव तथा सागरों में घास रूपी प्रथम वनस्पति के लिए जाना जाता है । स्थलीय भागों में ट्रिबिलाइटस (Tribilites) तथा ग्रेप्टेलाइट्स (Graptalites) नामक विशिष्ट जीव - जंतुओं का विकास हुआ ।
(ग) सिलुरियन युग (Silurian Period) : यह युग समुद्रों में मछलियां तथा स्थलीय भागों में विविध वनस्पतियों के विकास का युग है । अकशेरुकी जीव इसी काल में उत्पन्न हुए । केलोडियन भूसंचलन द्वारा विस्तृत पर्वतक्रम उत्पन्न हुए ।
(घ) डेवोनियन युग (Devonian Period) : इस युग में समुद्री क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर मछलियां उत्पन्न होने के कारण इस युग को 'मछली युग' के नाम से जाना जाता है । केलिडोनियन पर्वतों की ऊंचाई में वृद्धि तथा लाल बालु पत्थर व चूना पत्थर शैलों की उत्पत्ति हुई ।
(ड़) कार्बोनिफेरस युग (Carboniferous Period) : इस युग को 'कोयला युग' के नाम से जाना जाता है । क्योंकि इस युग में उष्णार्द्र जलवायु के कारण अधिक वर्षा हुई परिणामस्वरूप सघन वनों की उत्पत्ति हुई । ये वन महाद्वीपों के अवतलन के कारण जलमग्न हुए । इन पर अवसादों का निक्षेपण हुआ । वनों के अधिक समय तक शैलों में दबे रहने के कारण कोयलें का निर्माण हुआ । इस में आर्मोंनियन नामक भूसंचलन से पर्वतक्रमों का निर्माण हुआ समुद्रों में अवसादों के निक्षेपण में वृद्धि से उथले सागरों का विकास हुआ । स्थलीय व जलीय जीवों में वृद्धि हुई ।
(च) पर्मियन युग (Permian Period) : इस युग में वलित पर्वतों का निर्माण हरसीनियन भूसंचलन के परिणामस्वरूप हुआ । यह भूसंचलन केलिडोनियन भूसंचलन के 13 करोड़ वर्ष पश्चात हुआ । इस युग में तापमान में वृद्धि के कारण जलवायु में शुष्कता बढ़ती गई ।
3. मध्यजीवी महाकल्प :
यह महाकल्प विशालकाय जीव-जंतुओं, पक्षियों एवं फूलों वाले वृक्षों की उत्पत्ति का काल है । इस काल में अंटार्कटिका महाद्वीप की जलवायु उष्ण रहने के प्रमाण मिलें हैं । टेथिस सागर के दक्षिण में गोंडवानालैंड के प्रमाण मिलते हैं । इस महाकल्प को निम्न 3 युगों में विभाजित किया गया है -
(क) ट्रियासिक युग (Triassic Period) : इस युग में छोटे स्तनपायी जीवों का विकास हुआ । दक्षिणी ध्रुव हिमाच्छादित व उत्तरी ध्रुव मरूस्थलीय थे । गोंडवाना एक संयुक्त भूखंड के रूप में अवस्थित था । दक्षिणी भारत में हिमप्रवाह के प्रमाण उपलब्ध है ।
(ख) जुरासिक युग (Jurassic Period) : इस युग में स्थलीय भागों में व्यापक उष्ण व शुष्क जलवायु के कारण स्थल, जल व नभ में व्यापक जीवों, जंतुओं तथा पक्षियों की उत्पत्ति हुई । कुछ जंतु हाथी व गैंडे के समान विशालकाय एवं भंयकर थे । डायनोसोर इसी युग में उत्पन्न हुए थे । निवादा एवं लारेमाइड भूसंचलन इसी युग में उत्पन्न हुए । भारत में राजमहल एवं सिलहट की पहाड़ियों का निर्माण जुरासिक युग में ही हुआ था ।
(ग) क्रिटेशस युग (Cretaceous Period) : इस युग में लावा प्रवाह के प्रमाण मिले हैं । भारत में दक्कन के पठार पर 5 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में लावा प्रवाह के प्रमाण मिलते हैं । इसके अतिरिक्त इस युग में ओक, वालनट, विलो तथा नारियल वृक्षों की उत्पत्ति हुई । उत्तरी गोलार्ध में भूमि का अवतलन हुआ ।
4. नवजीवी महाकल्प :
यह महाकल्प लगभग 4 करोड वर्ष पूर्व आरंभ हुआ था । प्रथम आदि मानव का जन्म इसी काल में हुआ था । इस महाकल्प में पृथ्वी काफी ठंडी हो चुकी थी । हिम एवं ठंड के कारण रेंगने वाले जीवो में व्यापक कमी हुई । वहीं अल्पाइन भूसंचलन के कारण यूरेशिया में जिब्राल्टर से हिमालय तक वलित पर्वतों का निर्माण हुआ, उत्तरी यूरोप एवं सिंधु - गंगा नदियों के मैदानों का निर्माण हुआ । गोंडवाना भूखंड के विस्थापन से अफ्रीका, दक्कन का पठार आदि भूभाग पृथक हुए । कुछ क्षेत्रों में ज्वालामुखी विस्फोट के प्रमाण भी मिलते हैं । इस महाकल्प को निम्न 4 युगों में विभाजित किया गया है -
(क) इयोसीन युग (Eocene Period) : इस युग में हिमालय की रचना आरंभ हुई । यूरोप महाद्वीप का अवतलन होने से सागरों का विस्तार हुआ । अटलांटिक एवं हिन्द महासागर का विस्तार हुआ । इंग्लैंड से ग्रीनलैंड तक उष्णकटिबंधीय जलवायु के कारण ताड़ के वृक्षों में वृद्धि हुई । विशालकाय रेंगने वाले जीव विलुप्त हो गए । किंतु सागरीय गाय तथा व्हेल मौजूद थे । स्थल पर अनेकों स्तनपायी जीवों की उत्पत्ति हुई । हाथी, घोड़ा, गैंडा, सुअर, मगर, कछुए आदि जीव विकसित हुए । प्राचीन वानर तथा गिब्सन का आर्विभाव हुआ ।
(ख) ओलिगोसीन युग (Oligocene Period) : मनुष्य के पूर्वजों के रूप में वानर (ape) का विकास इसी युग में हुआ । सागरों का निवर्तन होने से स्थलीय भागों का विस्तार हुआ । यूरोप के आल्प्स पर्वतों का निर्माण हुआ । शीतल जलवायु चक्र से कुछ भागों के वन नष्ट हो गये । जलीय भागों में केकड़ा, घोंघा आदि जबकि स्थलीय भागों में अनेकों स्तनपायी जीवों का विकास हुआ । बिल्ली, कुत्ता, भालू व वर्तमान हाथी आदि विकसित हुए ।
(ग) मायोसीन युग (Miocene Period) : मायोसीन युग में ज्वालामुखी क्रियाओं की सक्रियता, शक्तिशाली भू-हलचलों एवं जलवायवीय दशाओं में पर्याप्त विभिन्नता के कारण सागरों में संकुचन, वलित पर्वतों में विस्तार, विविधता युक्त वनस्पतियों का विस्तार एवं विशालकाय शार्क मछली, पेग्विंन, जलीय पक्षी, बतख आदि विकसित हुए ।
(घ) प्लायोसीन युग (Pliocene Period) : इस युग में हिमालय के अंतिम उत्थान के फलस्वरूप शिवालिक श्रेणी निर्मित हुई । सागरों एवं महासागरों का वर्तमान स्वरूप निश्चित हुआ । स्थलीय भागों पर बड़े स्तनपायी जीवों का ह्रास एवं नरवानरों का विकास हुआ । सागरीय पौधों एवं जीवों का वर्तमान रूप विकसित हुआ ।
नूतन महाकल्प या चतुर्थ महाकल्प :
यह महाकल्प पृथ्वी के जीवन इतिहास का नवीनतम महाकल्प है । इसी महाकल्प में वर्तमान मनुष्य एवं वनस्पतियों का जन्म हुआ । मनुष्य में बुद्धि का प्रसार पक्षियों का विकास भी इसी महाकल्प की देन है । इस महाकल्प को निम्न दो भागों में बांटा जाता है -
(क) प्लीस्टोसीन युग ( Pleistocene Period) : इस युग में आज से लगभग 10 लाख वर्ष पूर्व भूपटल पर विस्तृत हिमावरण था । यह हिमाच्छादन कार्बोनीफेरस युग (वर्तमान से 35 करोड़ वर्ष पूर्व) की अपेक्षा अधिक व्यापक एवं विस्तृत था । इसी कारण इस युग को 'महान हिमकाल (The Great Ice Age)' कहा जाता है । यह हिमचादर 10,000 वर्ष पूर्व ही हट सकी ।
उत्तरी अमेरिका में चार बार हिम प्रसार (हिमयुग) - नेब्रास्का, कन्सान, इलिनोइन तथा विस्कांसिन हुए हैं । इन हिमयुगों के मध्य तापमान बढने पर हिमान्तर काल भी हुए हैं जो क्रमशः - अफ्टोनियन, यारमाउथ तथा संगमन कहलाते हैं । पेन्क व ब्रुकनर ने युरोप में गुॅंज, मिण्डल, रिस तथा वुर्म नामक चार हिमयुग बताये हैं ।
थार्नबरी महोदय के अनुसार प्लीस्टोसीन युग में हिमनदन (Glaciation) होने से अनेक विशिष्ट स्थलाकृतियों का निर्माण हुआ । उत्तरी अमेरिका में महान झीलें व युरोप में अनेक झीलों तथा साइबेरिया में दलदलों का निर्माण हुआ । हिम चादर हटने से नार्वे के फियोर्ड तट विकसित हुए । अनेक स्थानों पर हिमोढ पाये जाते हैं । सागरों में हिमाच्छादन के कारण प्रवाल जीव नष्ट हुए तथा हिम पिघलने पर पुनः विकसित हुए । हिम के कारण युरोप की कोमल वनस्पति नष्ट हुई तथा कठोर वनस्पति शेष रही । मानव प्रजातियों का विकास हुआ । जलवायु परिवर्तन होने पर जीव-जंतुओं का स्थानांतरण होने लगा ।
(ख) होलोसीन युग (Holocene Period) : आधुनिक मानव का जन्म इसी युग में हुआ । आज से लगभग 10 हजार वर्ष पूर्व हिम चादर के पीछे हटने एवं जलवायु उष्ण होने के कारण युरोपीय क्षेत्र में वनों का विकास हुआ । उत्तरी अफ्रीका व मध्य एशिया में विशाल मरूस्थलों की उत्पत्ति हुई । स्थलाकृतियों ने वर्तमान रूप ग्रहण किया ।
उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि पृथ्वी एवं जैविक सम्पदा का विकास एक क्रमिक प्रक्रिया से हुआ है न कि किसी दैवीय शक्ति से । आज भी वैज्ञानिक इस दिशा में कार्य रहें हैं तथा भविष्य की जटिलताओं से निपटने में शोध व अनुसंधान जारी है । वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 2050 तक पृथ्वी की सतह का तापमान 1.5°C से 4.5°C तक बढ जायेगा । क्योंकि पिछले 120 वर्षों के प्रमाणिक अध्ययन पर धरातल के क्रमशः उष्ण होने की पुष्टि हुई है । यदि ऐसा होता है तो हिमनद पिघलेगें तथा सागरीय सतह ऊॅंची होगी ।
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