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महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत

सबसे पहले 1620 ईस्वी में फ्रांसिस बेकन नामक विद्वान ने यह इंगित किया था कि अफ्रीका के पश्चिमी तट तथा दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी तट में अत्यधिक साम्यता है । इनके पश्चात कई विद्वानों ने अन्य महाद्वीपों के तट रेखाओं में विद्यमान समानताओं के प्रमाण प्रस्तुत किए थे ।

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जनवरी 1912 को फ्रेंकफर्ट में हुए भू-गर्भिय सम्मेलन में जर्मन विद्वान अल्फ्रेड लोथर वेगनर ने अपना महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत प्रस्तुत किया । उन्होंने बाद में सन् 1915 में ‘द ऑरिजिन ऑफ कन्टिनेन्टल एंड ओसियन' पुस्तक भी प्रकाशित की थी । वेगनर महोदय एक जलवायुवेता थे । इनका अध्ययन बिन्दु ' प्राचीन काल की जलवायु में परिवर्तन तथा वितरण' था । उन्होंने अपने अनुसंधान के दौरान पाया कि भूमध्यरेखीय उष्ण एवं आर्कटिक जलवायु के चिन्ह ऐसे स्थानों पर मिलते हैंजहां उनकी उपस्थिति असंभव लगती है । इस समस्या के समाधान में उन्होंने अनुमान लगाया कि 

(अ)  या तो सूर्य का जलवायु क्षेत्रों पर नियंत्रण नहीं रहा होगा या 

(आ) पृथ्वी के विशाल भूखंड (महाद्वीप) अपने मूल स्थान से विस्थापित (प्रवाहित) हो गये होंगे ।

दूसरे अनुमान से प्रभावित होकर ही वेगनर ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया था ।

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत

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वेगनर के अनुसार ‌पुराजीवकल्प के कार्बोनीफेरस युग (आज से लगभग 360 मिलियन वर्ष पूर्व) में सभी महाद्वीप आपस में जुड़े हुए थे । पृथ्वी पर एक विशाल महाद्वीप, जिसका नाम था ‘पैंजिया’ तथा एक महासागर जिसे वेगनर ने ‘पेन्थालासा’ कहा हैविस्तृत था । पैंजिया सियाल से निर्मित था तथा सघन सिमा पर तैर रहा था । पैंजिया के मध्य में ‘टेथिस’ नामक एक उथला सागर स्थित था । इस टैथिस सागर के उत्तर में ‘अंगारालैण्ड या लारेंशिया' भूखण्ड स्थित था । जिसमें उत्तरी अमेरिका एवं युरेशिया संलग्न थे । इसी प्रकार टैथिस सागर के दक्षिण भाग में ‘गौण्डवानालैण्ड' स्थित था, जिसमें दक्षिणी अमेरिकाअफ्रीकामैडागास्करआस्ट्रेलियाप्रायद्वीपीय भारत एवं अण्टार्कटिका परस्पर जुड़े हुए थे । दक्षिणी ध्रुव वर्तमान दक्षिणी अफ्रीकी तट (नेटाल) के पास अर्थात पैंजिया के मध्य में अवस्थित था । कार्बोनीफेरस युग के अंत में पैंजिया टूटकर विस्थापित (प्रवाहित) होने लगा । जिसकी दो दिशाएं थी 

 (अ)   विषुवत रेखा की ओर तथा

   (आ)  पश्चिम दिशा की और ।

विषुवत रेखा की ओर गुरूत्वाकर्षण तथा द्रव के उछाल (प्लावनशील का बल) के परस्पर संबंध के  कारण भूखण्डों का विस्थापन हुआ, जबकि पश्चिम की ओर विस्थापन सूर्य व चन्द्रमा की ज्वारीय शक्ति के कारण हुआ । ज्वरीय बल के कारण प्रायद्वीपीय भारतमैडागास्कर, आस्ट्रेलिया तथा अण्टार्कटिका विभक्त होकर प्रवाहित हुए । इसी प्रकार उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका का विस्थापन पश्चिम की ओर हुआलेकिन सीमा द्वारा रूकावट उत्पन्न होने से रॉकीज एवं एण्डीज पर्वतों का निर्माण हुआ । महाद्वीपों के इस क्रम में हुए विस्थापन के कारण महाद्वीप एवं महासागरों का वर्तमान स्वरूप मिलता है । वेगनर के अनुसार यह विस्थापन वर्तमान में भी जारी है ।

सिद्धांत के पक्ष में तर्क

1. वेगनर के अनुसार अटलांटिक महासागर के दोनों तटों को आपस में मिलाया जाये तो ये एक दूसरे के साथ सटीक तरीके से मिल जाते हैं । इसी प्रकार उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट को युरोप के पश्चिमी तट से जोड़ा जा सकता है । ब्राजील के उभार को गिनी की खाड़ी में आसानी से मिलाया जा सकता है ।

2. अटलांटिक तट की शैलें व पर्वत श्रेणियों में भी भारी समानता है । इनका भू वैज्ञानिक इतिहास एवं संरचना भी एक समान है । यूरोप, अफ्रीका एवं अमेरिका के पर्वतों की रचना भी समान है । ब्राजील का पठार, दक्षिणी अफ्रीका, दक्कन का पठार एवं ऑस्ट्रेलिया का पठार संरचना की दृष्टि से समान है । दक्षिण अफ्रीका एवं दक्षिणी अमेरिका में खनिज भी समान रूप से पाए जाते हैं । इस प्रकार भूवैज्ञानिक प्रमाण भी सिद्धांत के पक्ष में हैं ।

3. स्केन्डिनेविया के विशिष्ट लेंमिंग जन्तु पश्चिम की ओर यात्रा करते हुए अटलांटिक महासागर में में डुब जाते हैं, उनकी यह प्रवृत्ति पश्चिम की ओर किसी भूखण्ड की ओर जाने को संसूचित करती है ।

4. छोटे सरीसृप मेसोसॉरस के जीवाश्म सिर्फ दक्षिणी अफ्रीका एवं ब्राजील में पाए गए हैं । जो यह प्रमाणित करते हैं कि किसी समय ये परस्पर जुड़े हुए रहे होंगें ।

5. फाकलैंडदक्षिणी अफ्रीकाब्राजील व आस्ट्रेलिया जैसे दूर – दूर स्थित स्थल-खण्डों में कार्बोनीफेरस युगीन हिमानीकरण के प्रमाण समान रूप से पाए गए हैंजो पैंजिया के अस्तित्व को प्रमाणित करते हैं ।

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