परिवर्तन प्रकृति का नियम है । भूपटल भी इस नियम का अपवाद नहीं है । भूपटल पर सदैव दो प्रकार के बल क्रियाशील रहते है । प्रथम, अन्तर्जात बल (Endogenetic Force) यह बल भूपटल में निरंतर विभिन्नताएं निर्मित करता है । द्वितीय, बहिर्जात बल (Exogenous force) यह भूपटल पर सदैव समानता स्थापित करने का कार्य करता है । वलन (Folds) अंतर्जात बलों के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं । पृथ्वी के आंतरिक भाग में उत्पन्न अंतर्जात बलों के क्षैतिज संचलन द्वारा धरातलीय चट्टानों में सम्पीडन के परिणामस्वरूप लहरों के रूप में पड़ने वाले मोड़ों को वलन (Folds) कहा जाता है । जब शैले आमने-सामने क्रियाशील होती है तो जो बल लगता है उसे सम्पीडनात्मक बल (Compressional Force) कहा जाता है । वलनों को निम्नानुसार वर्गीकृत किया जाता है –
1. 1. सममित वलन (Symmetrical Fold) – जब किसी वलन की दोनों भुजाओं का झुकाव समान रूप में होता है तब उसे सममित वलन कहते हैं । यह खुले प्रकार का वलन होता है ।
2. असममित वलन (Asymmetrical Fold) – जब किसी वलन की एक भुजा तो सामान्य झुकाव वाली होती है तथा दूसरी भुजा का झुकाव अधिक होता है एवं वह छोटी होती है, तब ऐसे वलन को असममित वलन कहा जाता है ।
3. 3. एकदिग्नत वलन (Monoclonal Fold) – जब किसी वलन की एक भुजा सामान्य झुकाव तथा ढाल वाली होती है जबकि दूसरी भुजा पर समकोण बनाती है एवं उसका ढाल खड़ा होता है तब उसे एकदिग्नत वलन कहते हैं ।
4. समनत वलन (Isoclinal Fold) – जब क्षैतिज संचलन के कारण किसी वलन की दोनों भुजाओं पर दोनों दिशाओं से समान सम्पीडनात्मक बल क्रियाशील होता है तब उसकी दोनों भुजाएं समान रूप से झुककर एक-दूसरे के समानांतर हो जाती हैं । ऐसे वलन को समनत वलन कहा जाता है । इनकी दिशा का क्षैतिज होना आवश्यक नहीं है ।
5. 5. परिवलित या ध्यान वलन (Recumbent Fold) – अत्यधिक तीव्र क्षैतिज संचलन के कारण जब वलन की दोनों भुजाएं क्षैतिज रूप में समानांतर हों जाती हैं तब उसे परिवर्तित या शयान वलन कहते हैं ।
6. प्रतिवलन (Overturned Fold) – जब अत्यधिक क्षैतिज गति के कारण किसी वलन की एक भुजा दूसरी भुजा पर उलट जाती है तब उसे प्रतिवलन कहा जाता है ।
7. 7. खुला वलन (Open Fold) – जब किसी भी वलन की दोनों भुजाएं 90° से अधिक एवं 180° से कम का कोण अर्थात अधिक कोण बनाती हैं तब उसे खुला वलन कहते हैं ।
. 8. बन्द वलन (Closed Fold) – जब किसी वलन की दोनों भुजाएं न्यून कोण (90° से कम का कोण) बनाती हैं तब उसे बन्द वलन के नाम से जाना जाता है ।
भ्रंश (Faults) - जब तनाव के कारण चट्टानें टूटकर दूर तक खिसकती हैं या उनमें विस्थापन होता है तो उसे भ्रंश कहते हैं । होम्स के अनुसार, “भ्रंश वह विभंजित धरातल है जिसके विरूद्ध चट्टानें सापेक्षिक रूप से ऊपर-नीचे हो जाती हैं ।“ भ्रंशो (Faults) को निम्नानुसार वर्गीकृत किया जाता है –
1. 1. सामान्य भ्रंश (Normal Fault) – अन्तर्जात बल के कारण भूखण्ड में दरार पड़ जाने पर जब दोनों खण्ड विपरीत दिशा में खिसकते हैं, तो इसे सामान्य भ्रंश कहते हैं ।
2. 2. उत्क्रम भ्रंश ( Reverse Fault) – सामान्य भ्रंश के विपरीत इसमें दोनों खण्ड एक-दूसरे के पास खिसकते हैं तथा भ्रंश तल के ऊपर वाला खण्ड नीचे वाले खण्ड के ऊपर चढ़ जाता है, इसे उत्क्रम भ्रंश कहते हैं ।
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4. 4. सोपानी भ्रंश (Step Fault) – जब किसी भू-भाग में तनाव या सम्पीडन द्वारा कई समानांतर भ्रंश इस प्रकार पड़ते हैं कि भू-भाग अनेक सीढ़ियों में परिवर्तित हो जाता है, इसे सोपानी भ्रंश कहते हैं ।
1. 5. अधिक्षेप भ्रंश (Over Thrust Fault) – इसमें ऊपर वाली चट्टान अपनी आधार भित्ति पर चढ़ जाती है । इसमें भ्रंश तल क्षैतिज रहता है ।
6. तिर्यक भ्रंश Oblique or Slip Fault) – इस प्रकार के भ्रंश में ऊर्ध्वाधर एवं क्षैतिज दोनों प्रकार के संचलन होते हैं ।
सीढ़ीदार भ्रंशों से दो अन्य प्रमुख स्थलरूप बनते हैं – भ्रंश घाटी (Rift Valley) तथा होर्स्ट या ब्लॉक पर्वत ।
जब दो समानांतर भ्रंशो के मध्य का भाग नीचे अवतलित हो जाता है तो बीच में एक लम्बी एवं संकरी घाटी बन जाती है, जिसे भ्रंश घाटी कहते हैं । कभी – कभी दो समानांतर भ्रंशो के दोनों ओर के भाग उत्थित हो जाते हैं, जिस कारण मध्य की नीची रही भूमि घाटीनुमा बन जाती है ।
जब भ्रंश क्रिया द्वारा या तो दरारों के मध्य का भाग ऊपर उठ जाए अथवा मध्य का भाग स्थिर रहे एवं भ्रंश तल के सहारे दोनों ओर की चट्टानें नीचे की ओर खिसक जाएं तो ब्लॉक पर्वत बनता है इसे ही जर्मन भाषा में हॉर्स्ट कहते हैं ।
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