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पृथ्वी की आंतरिक संरचना

नमस्कार दोस्तों !! 

मनुष्य का भूगर्भ संबंधित ज्ञान धरातल से 5 - 6 किमी गहराई तक सीमित है । इतनी गहराई तक वह उष्ण जलस्रोतों, कुॅंओं, खदानों तथा वेधन छिद्रों आदि के माध्यम से प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त किया है । अधिक गहराई तक जानकारी के लिए अथवा अध्धयन के लिए आज भी हमारे वैज्ञानिक अप्रत्यक्ष साधनों पर निर्भर है । परन्तु ऐसा नहीं है कि हम पृथ्वी के आन्तरिक भाग को जान नहीं पाये हैं । आधुनिक समय में हमारे वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के आन्तरिक भाग के बारे में अपूर्व ठोस तथ्य ज्ञात कर लिये हैं, जिससे हमें भूगर्भ की वैज्ञानिक जानकारी प्राप्त होती है । कुछ तथ्य ऐसे अवश्य है जिनके बारे में निश्चित प्रमाण अभी प्राप्त नहीं हुए हैं, जैसे - भूगर्भ की भौतिक व रासायनिक रचना, भूगर्भ का ठोस अथवा द्रवित अवस्था में होना, तापमान एवं घनत्व आदि ।


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चलिए अब चर्चा करते हैं मानव के भूगर्भ को जानने के प्रयासों की । दोस्तों ! आज से लगभग 2000 वर्ष पूर्व युनानी विद्वानों ने उष्ण जल स्रोतों, सक्रिय ज्वालामुखियों एवं पाताल तोड़ कुॅंओं आदि के आधार पर पृथ्वी के आंतरिक भाग में जल, वायु एवं अग्नि के भण्डारों की सम्भावना जताई थी । लगभग 250 वर्ष पूर्व फ्रांसीसी वैज्ञानिक बाफ़र ने पृथ्वी का आन्तरिक भाग पर्वतों की अपेक्षा अधिक सघन बताते हुए सम्पूर्ण पृथ्वी का घनत्व 5.5 बताया । उन्होंने यह भी सिद्ध किया कि पृथ्वी का आन्तरिक भाग रिक्त, वायव्य या जलपूर्ण नहीं है । इसी प्रकार लाप्लास (1755) ने अपने पृथ्वी की उत्पत्ति सम्बन्धी सिद्धांत में मत प्रकट किया था कि आरम्भ में पृथ्वी उष्ण व गैसीय थी । पहले इसकी ऊपरी परत ठण्डी व ठोस हुई तत्पश्चात् क्रमशः भीतरी भाग कठोर हुआ ।

20वीं शताब्दी के चौथे दशक तक पृथ्वी की उत्पत्ति सूर्य या सूर्य जैसे किसी अन्य तारे से मानी गई । परन्तु वैज्ञानिकों के अथक प्रयासों से आज हम जानते हैं कि तारों की उत्पत्ति हाइड्रोजन, हिलियम एवं मिथेन जैसे हल्के तत्वों हुई है जबकि पृथ्वी एवं अन्य ग्रह सिलिका, मैग्नीशियम एवं फैरम जैसे भारी तत्वों से निर्मित हैं । इस भारी पदार्थ के स्रोत को ढूंढने के लिए क्वीपर, उरे तथा शिमिट आदि वैज्ञानिकों ने ग्रहों की उत्पत्ति 'आदि गैसों और धूल के बादलों' से मानीमानी जिसमें भारी तत्वों की मात्रा रही होगी । शिमिट महोदय का मत है कि पृथ्वी के आन्तरिक भाग में रेडियो-एक्टिव तत्वों के विखण्डन से पृथ्वी का तपमान 2000°C या 3000°C पहुँच गया होगा । जिससे पृथ्वी द्रवित हो गयी होगी । उस अवस्था में सिलिका व एल्यूमीनियम जैसे हल्के पदार्थ पृथ्वी के ऊपरी भाग में तथा लौह  व निकिल जैसे भारी पदार्थ पृथ्वी के केन्द्र में बैठ गयें होंगे । पृथ्वी की संरचना में आज भी यही क्रम पाया जाता है । 

भूपटल की गहराई 

पृथ्वी की बाह्य कठोर पपड़ी जो प्रधानत: ग्रेनाइट शैलों से निर्मित है, भूपटल (Crust) कहलाती है । भूपटल की गहराई के सम्बन्ध में विद्वान एकमत नहीं हैं । सभी विद्वानों व सिद्धान्तों दृष्टिगत रखते हुए पृथ्वी के भूपटल की औसत गहराई लगभग 20 किलोमीटर है ।

आधुनिक विद्वान पृथ्वी की आन्तरिक संरचना को समझने के लिए भूगर्भ के तापमान, घनत्व, दवाब, ज्वालामुखी क्रिया तथा भूकंप आदि को आधार मानकर कुछ तथ्य प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किये हैं जो इस प्रकार हैं -

1. तापमान आधारित प्रमाण

भूपटल ठोस, कठोर व शीतल है किन्तु खदानों में गहराई की ओर जाते हुए क्रमशः ताप की वृद्धि अनुभव होती है। औसत रूप से गहराई में प्रति किमी 5°C की वृद्धि होती है। केलविन (Kelvin) महोदय ने पृथ्वी के इतिहास का विवेचन करते हुए बताया था कि पृथ्वी 6000°C तापक्रम से क्रमशः ठण्डी हुई है। सर्वप्रथम भूपटल ठण्डा हुआ । परन्तु भीतरी भाग आज भी उष्ण है, इसके प्रत्यक्ष  प्रमाण उष्ण जलस्रोत,  गीजर, लावा के उद्गार आदि है।

पृथ्वी में गहराई के अनुसार अधिक ताप होने के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं। यही नहीं, मरूस्थलों, ध्रुवीय प्रदेशों एवं सागरीय तल के नीचे गहराई पर तापक्रम की भिन्नता पाई जाती है। साधारण गहराई पर ताप वृद्धि की दर में अवश्य भिन्नता होती है। जैसे - टुंड्रा प्रदेशों में मरूस्थलों की अपेक्षा गहराई पर ताप की वृद्धि कम होगी। किन्तु अधिक गहराई पर तापक्रम बढनें की दर सर्वत्र समान होती है। 

इस प्रकार उच्च ताप के कारण भूगर्भ में द्रवित शैलों की कल्पना की गई है। जिसका प्रमाण हमें ज्वालामुखी क्रिया के दौरान निष्कासित लावा से मिलता है। इस दृष्टि से भूगर्भ का तरल होना सिद्ध होता है। किन्तु इसके विपक्ष में वैज्ञानिकों का कथन है कि गहराई पर दवाब की वृद्धि भी होती है जिससे शैलों का द्रवणांक बढ़ जाता है। अत: आन्तरिक भाग की संरचना ठोस है । 

2. घनत्व आधारित प्रमाण

न्यूटन ने 18वीं शताब्दी में गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत प्रस्तुत करते हुए यह बताया था कि आकर्षण शक्ति पदार्थ के द्रव्य की मात्रा के अनुपात में बढ़ती है तथा उनके बीच की दूरी के अनुपात में कम होती है । इस सिद्धांत के आधार पर सम्पूर्ण पृथ्वी का आपेक्षिक घनत्व 5.5 निर्धारित किया गया, जबकि भूपटल का आपेक्षिक घनत्व 2.7 मात्र है । महाद्वीप अवसादी शैलों से निर्मित है इनसे निर्मित भूपटल की औसत गहराई 20 किलोमीटर मानी गई है । अवसादी शैलों के नीचे आग्नेय शैल बिछी है जिनका घनत्व 3 या 3.5 है । पृथ्वी के मध्य पिंड का घनत्व 11 से अधिक अनुमानित है । भूपटल से भू-केंद्र की ओर बढ़ते हुए भार की व्याख्या के लिए वैज्ञानिकों ने दो विकल्प प्रस्तुत किए हैं - प्रथम, ऊपरी परतों के दबाव के कारण निचली परतों का भार अधिक है। द्वितीय, पृथ्वी की रचना अनेक परतों से हुई है ऊपरी परत की अपेक्षा आंतरिक परतें भिन्न व भारी पदार्थ से निर्मित हैं । अनुमान किया जाता है कि प्रारंभ में जब पृथ्वी तरल अवस्था में थी तो लोहे में निकिल जैसी भारी धातुएं नीचे बैठ गई एवं हल्की धातुएं ऊपर एकत्रित हो गई । जैसे कि धातु शोधन भट्टी में धातु गलाने पर हल्के मैल की परत ऊपर जम जाती है तथा भारी पदार्थ नीचे बैठ जाते हैं । इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि जो पृथ्वी ठोस पिंड की भांति व्यवहार करती है वह अवश्य ही तरल अवस्था से गुजरी है । 

3. ज्वालामुखी क्रिया पर आधारित प्रमाण

भूपटल पर ज्वालामुखी क्रिया से निष्कासित लावा का स्रोत भूगर्भ के भीतर स्थित मैग्मा भंडार हैं । यह पृथ्वी की तरल अवस्था का सूचक है । किंतु यह पहले ही बताया जा चुका है कि भूगर्भ में अधिक गहराई पर अत्यंत उच्च तापक्रम होने पर भी शैलें द्रवित नहीं होती, क्योंकि भारी दबाव के कारण उनका द्रवणांक बढ़ जाता है । अतः वह ठोस ही रहती हैं । जब कभी भूगर्भिक अव्यवस्था के कारण भूपटल पर भ्रंश या दरें उत्पन्न होती हैं । तब शैलों पर से ऊपरी परतों का दबाव हट जाता है। इस दाब मुक्ति के कारण शैलों को द्रवणांक प्राप्त हो जाता है और शैलें पिघल जाती हैं । ये पिघली शैलें लावा के रूप में धरातल के 50 किलोमीटर नीचे से निष्कासित होती हैं । 

4. भूकंप विज्ञान पर आधारित प्रमाण

भूकंप विज्ञान द्वारा भूकंप तरंगों के अध्ययन से पृथ्वी की आंतरिक रचना के विषय में महत्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी प्राप्त हुई है । ध्वनि तरंगों के समान ही भूकंपीय तरंगे ठोस पदार्थ के भीतर की ओर गति से चलती हैं एवं तरंग माध्यम से गुजरते हुए उनकी गति कम हो जाती है । भूकंपीय तरंगे तरल पदार्थ को बिल्कुल ही पार नहीं कर पाती है । यदि भूगर्भ सर्वत्र समान पदार्थ से निर्मित होता तो भूकंप तरंगों में भिन्नता नहीं होती । भूगर्भ में जहां कहीं भी भिन्न घनत्व के स्तर मिलते हैं, वहां इन तरंगों में अपवर्तन तथा परावर्तन हो जाता है और तरंगों के मुड़ जाने से भूगर्भ के कुछ प्रदेश बिल्कुल भी प्रभावित नहीं होते हैं। पृथ्वी का आंतरिक भाग कई अलग-अलग परतों से बना है, जिनमें से प्रत्येक की अपनी अनूठी विशेषताएं और विशेषताएं हैं।  ये परतें, सबसे बाहरी से लेकर सबसे भीतरी तक, क्रस्ट, मेंटल, बाहरी कोर और आंतरिक कोर हैं।  आइए इनमें से प्रत्येक परत के बारे में विस्तार से जानें:-


भूपर्पटी

पृथ्वी की सबसे बाहरी परत भूपर्पटी है और इसी पर हम रहते हैं।  यह अन्य परतों की तुलना में अपेक्षाकृत पतली है और ठोस चट्टान से बनी है। भूपर्पटी दो प्रकार की होती है:-


महाद्वीपीय भूपटल: यह पृथ्वी की भूपर्पटी का मोटा हिस्सा है जो महाद्वीपों का निर्माण करता है।  यह मुख्य रूप से ग्रेनाइट से बना है और समुद्री परत की तुलना में कम घना है।

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महासागरीय भूपटल: यह पृथ्वी की पपड़ी का पतला हिस्सा है जो महासागरीय घाटियों के नीचे स्थित है।  यह मुख्य रूप से बेसाल्ट से बना है और महाद्वीपीय परत से अधिक सघन है।


 मेंटल

भूपर्पटी परत के नीचे मेंटल होता है, जो पृथ्वी की सतह से लगभग 2,900 किलोमीटर (1,800 मील) की गहराई तक फैला होता है।  मेंटल अधिकतर ठोस होता है लेकिन भूवैज्ञानिक समय के पैमाने पर धीरे-धीरे प्रवाहित हो सकता है ।  यह सिलिकेट चट्टानों से बना है और संवहन धाराओं के लिए जिम्मेदार है जो पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेटों की गति को संचालित करती हैं।

क्रोड (Core)

क्रोड को निम्न दो भागों  में विभाजित किया जाता है -

बाहरी कोर: मेंटल के नीचे, लगभग 2,900 किलोमीटर (1,800 मील) की गहराई से शुरू होकर लगभग 5,150 किलोमीटर (3,200 मील) तक फैला हुआ, बाहरी कोर है।  ठोस मेंटल के विपरीत, बाहरी कोर तरल लोहे और निकल से बना है।  यह परत जियोडायनेमो की प्रक्रिया के माध्यम से पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करने के लिए जिम्मेदार है।

आंतरिक कोर:  पृथ्वी की सबसे भीतरी परत, जो पृथ्वी के केंद्र से लगभग 5,150 किलोमीटर (3,200 मील) की गहराई पर स्थित है, आंतरिक कोर है।  इस गहराई पर अत्यधिक दबाव के कारण यह ठोस लोहे और निकल से बना है।  अत्यधिक दबाव के बावजूद, उच्च तापमान के कारण आंतरिक कोर ठोस रहता है, जो धातुओं को ठोस अवस्था में रखता है।


इन परतों में विशिष्ट भौतिक और रासायनिक गुण होते हैं।  गहराई के साथ तापमान और दबाव काफी बढ़ जाता है, और स्थितियों में यह भिन्नता पृथ्वी के भूविज्ञान, टेक्टोनिक्स और चुंबकीय क्षेत्र को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।  इन परतों की गति और अंतःक्रिया भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट और पर्वत श्रृंखलाओं के निर्माण सहित भूवैज्ञानिक घटनाओं की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए जिम्मेदार है।  इन आंतरिक परतों के अध्ययन से हमें पृथ्वी के इतिहास और इसमें चल रही भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं को समझने में मदद मिलती है।

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